माॅं के बिना

कुछ सुकून भरे पल
तुम्हारे
थरथराते ऑंचल से लिपट कर
अमर हो गये हैं!
एक गुजरी
‘सदी’
एकाकी ‘भविष्य-निधि’ को
सॅंभाल रही है!
जीवन
चेतना की कंदराओं में
भटक रहा है
एक अस्पष्ट शून्यता
तुम्हारी राह देख रही है माॅं
रश्मि ‘लहर’
कुछ सुकून भरे पल
तुम्हारे
थरथराते ऑंचल से लिपट कर
अमर हो गये हैं!
एक गुजरी
‘सदी’
एकाकी ‘भविष्य-निधि’ को
सॅंभाल रही है!
जीवन
चेतना की कंदराओं में
भटक रहा है
एक अस्पष्ट शून्यता
तुम्हारी राह देख रही है माॅं
रश्मि ‘लहर’