*कुंभ नहीं यह महाकुंभ है, डुबकी चलो लगाऍं (गीत)*
कुंभ नहीं यह महाकुंभ है, डुबकी चलो लगाऍं (गीत)
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कुंभ नहीं यह महाकुंभ है, डुबकी चलो लगाऍं
1)
महाकुंभ में तीरथराज, प्रयाग जगमगाया है
सागर-मंथन से छलका जो, अमृत फिर आया है
अमृत की बूॅंदों के जल में, हम भी चलो नहाऍं
2)
यह मेला है दुनिया-भर का, भक्त यहॉं आते हैं
श्रद्धा से सब ओतप्रोत हो, शिव-हरि-शिव गाते हैं
भरें दृश्य यह हम नेत्रों में, आओ पुण्य कमाऍं
3)
वर्ष एक सौ चौवालिस के, बाद कुंभ यह आया
नभ ने फिर संयोग अलौकिक, अद्भुत मधुर बनाया
संगम की पावन धारा से, शुद्ध देह कर जाऍं
कुंभ नहीं यह महाकुंभ है, डुबकी चलो लगाऍं
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451