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8 Aug 2024 · 1 min read

ग़ज़ल _ गुज़र गया वो ख्वाब था , निखर गया वो हाल था ,

आदाब दोस्तों 🌹🌹
दिनांक ,,,,08/08/2024,,
************** गज़ल ***************
1,,,
गुज़र गया वो ख्वाब था , निखर गया वो हाल था ,
न दिख सका नज़र से भी , न पास वो कमाल था ।
2,,,,
उड़ा के धूल आंख में , क़दम भी तेज़ हो गये ,
ज़बान चुप सी रह गयी , लबों पे बस सवाल था ।
3,,,,
नक़ाब यूँ हटी ज़रा , निगाह मिल गयी उधर ,
शरम से आंख झुक गयी, क़सम से क्या जमाल था ।
4,,,
रुबाब इस क़दर रहा , सभी वहाँ थे कांपते ,
उड़ी है नींद आज तक ,गज़ब का वो जलाल था ।
5,,,
खुमार भी बिना पिए , जो हो गया सो हो गया ,
नशा न देख पाये सुर्ख हाथ में गुलाल था ।
6,,,
हमारे हो के भी हमीं से दूर दूर क्यों रहे ,
बचा नहीं वहाँ पे कुछ, अजब हुआ बवाल था ।
7,,,
तमाम लोग थे वहाँ , न खा सके नियामतें ,
वो दावतों के दौर भी , जहाँ पे सब हलाल था ।
8,,,
गये जो अन्जुमन से वो, तो आस टूट सी गयी ,
समझ सका न ‘नील’ को , ज़मीर’ को मलाल था ।

✍नील रूहानी,,,08/08/2024,,,,🌸
🌸( नीलोफ़र खान ) ,,,🌸

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