कौन कहता है जीवन छोटा होता है,कभी उससे पूछो जो बेरोजगार होता
कौन कहता है जीवन छोटा होता है,कभी उससे पूछो जो बेरोजगार होता है ।।
कैसे उसे एक एक सेकंड की खबर रहती है,घड़ी की टिक टिक भी साफ सुनाई देती है ।।
हर मिनट, हर घंटा उसे महसूस होने लगता है,वक्त का हर लम्हा उसे काटने लगता है ।।
घर की दीवारों से उसकी यारी बढ़ जाती है,घर की दीवारें उसे पहचानने लग जाती है ।।
घर का हर एक कोना आपस में बातें करता है,बातों बातों में उसे अनेकों ताने देता है ।।
सबके ताने सुनकर भी वो चुप्पी साधे रहता है,अपनी मर्यादा को खामोशी से बांधे रहता है ।।
इतना सब सह सहकर वो दिन गुजारा करता है,रात होते ही बिस्तर पर पड़कर सो जाया करता है ।।
नौकरी की तलाश में दिनभर भागादौड़ी करता है,इस भागादौड़ी में वो खुद को भूल जाया करता है ।।
जगह जगह वो जाकर साक्षात्कार दिया करता है,अपने आत्मविश्वास को नहीं डिगने दिया करता है ।।
जब उसे कोई परिणाम नहीं मिला करता है,यकीन मानो उसका आत्मविश्वास हिला करता है ।।
उसके धैर्य का बांध टूटने लगता है,मन में एक अदृश्य युद्ध छिड़ने लगता है ।।
अनेकों युद्ध के बावजूद वो डटा रहता है,अपने धैर्य को टूटने से रोका करता है ।।
फिर दोबारा नए सिरे से संघर्ष किया करता है,अपने विश्वास को और दृढ़ किया करता है ।।
एक दिन उसके अंधकार का अंत हो जाता है,जब परिणाम के रूप में सूर्योदय हो जाता है ।।
वह अब बेरोजगार से रोजगार कहलाने लगता हैसमाज में सिर उठाकर जीवन बिताने लगता है ।।
“बेरोजगारों की बस इतनी कहानी रही है,समाज में उनकी कोई कहानी नहीं रही है ।।”