मैं वहाँ दूर से चमकता हुआ उस आईने को ऐसे देखा करता जैसे मेरी
मैं वहाँ दूर से चमकता हुआ उस आईने को ऐसे देखा करता जैसे मेरी जान उसी में बस चुकी हो | बडा़ खुबसूरत था वो, जिससे मन को बड़ा शुकून मिलता था |
~जितेन्द्र कुमार “सरकार”
मैं वहाँ दूर से चमकता हुआ उस आईने को ऐसे देखा करता जैसे मेरी जान उसी में बस चुकी हो | बडा़ खुबसूरत था वो, जिससे मन को बड़ा शुकून मिलता था |
~जितेन्द्र कुमार “सरकार”