*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
21/01/2025
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
मनमुटाव जब भी बढ़ते, अपने प्रिय संबंध में, हर पल हो मन खिन्न।
सत्य उजागर होता है, जो अंतर्मन पल रहा, लगते नहीं अभिन्न।।
सभी समर्थन झूठे से, लगते प्रतीत आज भी, जो कल थे अविछिन्न।
सजल आर्द्रता गायब हो, तपता रेगिस्तान सा, शेष नहीं हो क्लिन्न।।
होते है मतभेद अगर, छिड़े बहस मन क्रुद्ध हो, परुष वचन उद्भास।
वाकयुद्ध में जो जीते, समय असीमित जानकर, करता वही प्रयास।।
हम अपनी हदें तोड़ते, क्षण बीते सब छूटते, रहते बहुत उदास।
आओ अब इन्हें मिटायें, प्रेम गली सिंचित करें, तय हो वहीं प्रयास।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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