ये ज़िंदगी फिर से एक बार ग़म दे गई!
ये ज़िंदगी फिर से एक बार ग़म दे गई!
चाहा था जितना उससे कितना कम दे गई!
संजोते थे उन दिनों कितने सारे ख़्वाब साथ-साथ,
पर वो सारी इच्छाएं वास्तव में अब कम हो गई!
…. अजित कर्ण ✍️
ये ज़िंदगी फिर से एक बार ग़म दे गई!
चाहा था जितना उससे कितना कम दे गई!
संजोते थे उन दिनों कितने सारे ख़्वाब साथ-साथ,
पर वो सारी इच्छाएं वास्तव में अब कम हो गई!
…. अजित कर्ण ✍️