‼️ग़ज़ल‼️
‼️ग़ज़ल‼️
बह्र=2212 1212 2212 12
काफ़िया=आब की बंदिश का निर्वाह |
रदीफ़= है |
कहने का मेरे इतना ही लब्बोलुआब है |
खुद मैं खराब ही नहीं दुनिया खराब है |
मुश्ताक़ दिल की हसरतें क्या-क्या कराएंगी –
ये दिल तो बचपने से ही मेरा नवाब है |
जलते न हों दो-चार तो जीने का क्या मजा –
अपनी भी मुहल्ले में बड़ी आब-ओ-ताब है |
बालों के रँग को देखकर धोखा न खाइये –
कल ही लगाया बीबी ने सर पे खिजाब है |
पढ़ने के मामले में जमाखोर ही हूँ मैं –
खोली नहीं है आज तक इक भी किताब है ||
( मुश्ताक़=शौकीन)
नवनीत चौधरी ‘विदेह’
किच्छा ऊधम सिंह नगर
उत्तराखण्ड
संपर्क=9410477588