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4 Jan 2025 · 1 min read

दोहा पंचक. . . ख्वाब

दोहा पंचक. . . ख्वाब

आँखों में आवारगी, ख्वाबों के दस्तूर ।
बोसों के इसरार सब, लब को थे मंजूर ।।

उल्फत के अहसास हैं, आँखों के सब ख्वाब ।
कैसे उसके ख्वाब की, छोड़ें हसीं किताब ।।

उड़ -उड़ के गिरती रही, रुख पर पड़ी नकाब ।
कैसे कोई देखना , छोड़े ऐसा ख्वाब ।।

खड़ी बाम पर ओस में, सजनी देखे राह ।
बिना सजन इस शीत में, रातें हुईं तबाह ।।

नहीं उतरता आँख से, उसका अजब खुमार ।
जाने कैसे हो गया, उल्फत का इकरार ।।

सुशील सरना / 4-1-24

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