आज विदा हो जाओगे तुम
आज विदा हो जाओगे तुम
आज तुम्हारा अंतिम दिन है
जाड़े के सन्नाटे से
रजाई में लिपटा कहूँ अलविदा!
तुम बहुत बुरे थे बहुत बुरे हो
विरले क्षण को पढ़ने बैठा
ठिठूरन में न पढ़ने देते
छोड़ रजाई नहाने जाऊँ
चुल्लू पानी छिड़कन न देते
मेरी शिकायत बहुत है तुमसे
यायावर दिन आए न फिर से
जाओ दिसम्बर जाओ तुम
फिर से न लौट आना तुम
नई सुबह को लौट रहा हूँ
अतीत विदा कर कूच रहा हूँ
~ जितेन्द्र कुमार