– काश तुम्हारे प्रेम अनुरोध, अनुग्रह को न ठुकराया होता –
– काश तुम्हारे प्रेम, अनुरोध, अनुग्रह को न ठुकराया होता –
तुम्हारा सजन और तुमको अपनी सजनी ,सहधर्मिणी के रूप में पाया होता,
शादी के एल्बम में तुम्हारे साथ हमारे छायाचित्र को पाया होता,
दिल में तो हो सदा तुम ही मेरे,
मेरे घर आंगन में तुम्हे पाया होता,
अपने नन्हें – मुन्नों को अपनी गोद में खिलाया होता,
हर शादी , समारोह, उत्सव में तुम्हारा साथ पाया होता,
आज ईश्वर की अनुकंपा होती तो में और तुम हम होकर एक साथ होते,
लाख मिन्नते की थी तुमने मुझसे,
पर मुझे अपने परिवार कुल वंश का ख्याल न आया होता,
तुम्हारे जनक जननी के विरोध जाकर जो तुम मुझसे प्रेम कर बैठी,
इस बात का और तुम्हारे प्रेम का मैने मजाक न बनाया होता,
तुम्हें रोककर अपनी राह में न आने की सौगंध
देकर,
तुम्हे न ठुकराया होता,
कुलवंश की मर्यादा का भान न मुझको तब आया होता,
काश तुम्हारे प्रेम अनुरोध अनुग्रह को न ठुकराया होता,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान