कर्मों का है योग हो रहा,
कर्मों का है योग हो रहा,
स्वयं राह में कर्म बो रहा।
निर्भर करता कर्मों पर हैं,
राह में तेरी क्या हो रहा।
बीज रूप है कर्मों का ही,
कर्मों का ही वृक्ष हो रहा।
पीड़ा से क्यों व्यथित हो रहा,
जब पाप का है तू बीज बो रहा।
श्याम सांवरा….