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17 Dec 2024 · 1 min read

वक्त की रेत

वक्त की रेत फिसलती जाते हैं हाथों से।
और वो बहलाते जा रहे हैं हमें बातों से।

कौन रूकता है किसी के लिए अब समझे
क्यों बेकार ही हम , इश्क में जा उलझे।

सफेदी आ गयी जब से हमारे बालों पर
रफ़्तार जिंदगी देखी बिलखते गालों पर।

बहुत मायूस रहे हम इतनी उम्र जी कर
होश आया तब जब उठे बोतल पी कर।

न रूका हैं ,न थका है वक्त का परिंदा,
बस इतना समझो सब है मर कर जिंदा।

Surinder kaur

Language: Hindi
81 Views
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