अदावत
अपनी प्रभुता पर
बना अभिमान क्यों,
उपजी कटुता का
नहीं है भान क्यों।
सरलभाषी की
सहजता पर हंसी,
वाकपटुता पर
घना गुमान क्यों।
अंतर में विष की
मिलावट क्यों करें,
हरदम बातों की
बनावट क्यों करें।
औरों के दिल को
दुखाना लाज़मी न,
खुद से ही खुद की
अदावत क्यों करें।