बेदर्द ज़माने ने क्या खूब सताया है…!
बेदर्द ज़माने ने क्या खूब सताया है,
मज़लूम सर-ए-महफ़िल नज़रों से गिराया है।
यह बात सितम की है बदनाम किया हमको,
हर फ़र्ज़ मुहब्बत का शिद्दत से निभाया है।
गुलज़ार हुआ गुलशन कलियों पर शबनम से,
मौसम ने बहारों का पैग़ाम सुनाया है।
गर्दिश में सितारे हैं आराम करूँ कैसे?
क़िस्मत ने हमें यारो क्या खूब रुलाया है।
यह भूल तुम्हारी है नादान “परिंदा” हूँ,
तू सोच चराग़ों को क्यों ख़ुद ही बुझाया है?
पंकज शर्मा “परिंदा”