जिसने अपने जीवन में दर्द नहीं झेले उसने अपने जीवन में सुख भी
गीत- कभी क़िस्मत अगर रूठे...
हो तन मालिन जब फूलों का, दोषी भौंरा हो जाता है।
मजदूर का दर्द (कोरोना काल )– गीत
जो ख़ुद आरक्षण के बूते सत्ता के मज़े लूट रहा है, वो इसे काहे ख
हलधर फांसी, चढ़ना कैसे, बंद करें.??
उस मुहल्ले में फिर इक रोज़ बारिश आई,
*केवल पुस्तक को रट-रट कर, किसने प्रभु को पाया है (हिंदी गजल)
बहुत उम्मीदें थीं अपनी, मेरा कोई साथ दे देगा !
मुकाम जब मिल जाए, मुकद्दर भी झुक जाता है,