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28 Nov 2024 · 1 min read

मनुष्य को विवेकशील प्राणी माना गया है,बावजूद इसके सभी दुर्गु

मनुष्य को विवेकशील प्राणी माना गया है,बावजूद इसके सभी दुर्गुण उसके भीतर हैं,उसका चेहरा चिन्ताओं से ढका रहता है, उसमें समस्त दोष और दुर्बलताएँ हैं,उसके भीतर दूसरों के प्रति घृणा भरी रहती है,गद्दारी केवल मनुष्यों का लक्षण है,बाकी प्राणियों में वह नहीं पाई जाती, जिन्हें आमतौर पर बुद्धि-विवेक से रहित माना जाता है,
विवेकवान मनुष्य में आखिर वे दुर्गुण क्यों दिखाई पड़ते हैं,जो जंगली जानवरों तक में नहीं पाए जाते? क्या इसके पीछे किसी अलौकिक ताकत की रचना और विश्वास है? क्या ऐसा इसलिए कि सर्वशक्तिमान की महान विशेषताओं सम्बन्धी उसकी कल्पना अनुचित और पाखंड है, यदि हम यह समझने और पता लगाने में असमर्थ रहते हैं कि इस दुरावस्था के वास्तविक कारण क्या हैं,यदि हम उसके समाधान के लिए उपयुक्त सुझाव नहीं दे पाते;फिर हमारे विवेक की उपयोगिता ही क्या है.?.
…..” जनता “

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