वो बस सपने दिखाए जा रहे हैं।
अनुभवों संग पक्षाघात बना वरदान
चल आज फिर मुझसे कुछ बात कर।
किसी के टुकड़े पर पलने से अच्छा है खुद की ठोकरें खाईं जाए।
शिक्षामित्रों पर उपकार...
कच्चे मकानों में अब भी बसती है सुकून-ए-ज़िंदगी,
कविता ही तो परंम सत्य से, रूबरू हमें कराती है
- तुम्हारा ख्याल हरदम रहता है -
तेवरी में गीतात्मकता +योगेन्द्र शर्मा
वो दिन दूर नहीं जब दिवारों पर लिखा होगा...
ख्वाबों से परहेज़ है मेरा "वास्तविकता रूह को सुकून देती है"