हज़ार ग़म हैं तुम्हें कौन सा बताएं हम
जटिलता से सरलता की ओर। ~ रविकेश झा
भजन (बाबा भीमराव अम्बेडकर) )
तेरी यादें भुलाने का इक तरीका बड़ा पुराना है,
माँ
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
धिन हैं बायण मात ने, धिन हैं गढ़ चित्तौड़।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
मुझे पढ़ना आता हैं और उसे आंखो से जताना आता हैं,
अफसोस मुझको भी बदलना पड़ा जमाने के साथ
Poetry Writing Challenge-2 Result
ज़ब्त को जितना आज़माया है ।
दिवाली है दीपों का पर्व ,
बोला नदिया से उदधि, देखो मेरी शान (कुंडलिया)*
..........अकेला ही.......
दिवाली पर कुछ रुबाइयाँ...