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17 Nov 2024 · 1 min read

छप्पय छंद

छप्पय छंद
रोला+उल्लाला

सृजन शब्द-तपिश

रवि का बढ़ता ताप, धरा की तपिश बढ़ती।
तड़पे ऐसे लोग, बदन में ज्वाला जलती।।
पेड़ो को दें काट, भूमि अब सूनी रहती।
पंछी रोते खूब, डाल अब जाती कटती ।।
अब समय मनुज हुंकार भर, धरती नहिँ अंगार कर।
हो रहा जीना मुश्किल अब, विटपों से श्रृंगार कर।।

सीमा शर्मा ‘अंशु’

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