जिंदगी में मस्त रहना होगा
नफ़रतों का दौर कैसा चल गया
Kaushlendra Singh Lodhi Kaushal (कौशलेंद्र सिंह)
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
*कांच से अल्फाज़* पर समीक्षा *श्रीधर* जी द्वारा समीक्षा
बंदूक से अत्यंत ज़्यादा विचार घातक होते हैं,
अश्क जब देखता हूं, तेरी आँखों में।
कभी नजरें मिलाते हैं कभी नजरें चुराते हैं।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
* इंसान था रास्तों का मंजिल ने मुसाफिर ही बना डाला...!
छठी माई से बनी हम। चले जेकरा से दुनिया सारी।
स्वीकार्यता समर्पण से ही संभव है, और यदि आप नाटक कर रहे हैं