Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Oct 2024 · 1 min read

रौशनी मेरे लिए

रौशनी मेरे लिए
—————————————————-
हिस्सेदारी चाहना गुनाह नहीं है
मुझे चाहिए रौशनी।
जंगलों के बीच फंसा हुआ मैं मृतवत
चाहिए ही संजीवनी।
अंधेरे कोने में सिमटा हुआ हर छोर
पहाड़ी से उतरकर और
द्विगुणित करता हुआ मेरा भय।
छीजता जा रहा होता है
मेरे हाथों और मन से मेरे होने का समय।
रौशनी मांगना गुनाह नहीं है।
मेरे सुबह होने में ही वक्त क्यों लगता है!
मेरे रौशनी से ही अंधेरा क्यों टपकता है।
मुर्गे के सिर पर सा कलगी नहीं है
मेरे माथे पर इसलिए क्या!
कुचला हुआ मेरा अहम् और अहंकार
इसलिए क्या!
गौरव की चाहना,गुनाह नहीं है।
भोर का सूरज और दोपहर की धूप
वक्र है।
सौंदर्य किसीका हो, मेरा तो लगता कुचक्र है।
तालाब का जल पहरेदारी में है
और कुएं का निगरानी में।
किनारे बनाए रखा है जिसने
प्यास में ओठ काटता, गला दबाता
भाले लिए खड़ा है नहीं क्या नादानी में?
प्यास बुझाना गुनाह नहीं है।
विद्रोह बपौती नहीं है किन्तु,
हमारे लिए मृत्युंजयी भी नहीं।
मृत्यु से डरे हुए विद्रोह न करें
कि
विजय की कामना लेकर
विरोध के रास्ते उकेर जाएँ यहीं।
जय का प्रण गुनाह नहीं है।
आवाज उठाकर चुप हो जाना
हमारी नीयत हो ही नहीं सकती।
हाशिये पर के लोग हैं हम
काश!
आग हमारे लिए भी धधकती।
जंगलों को भस्म कर दें
आसमान को नीचे खींच लें
रौशनी के लिए।
तुम्हारे भविष्य से
समझौता नहीं करना है पर,
नियंता से करना गुनाह नहीं है।
रौशनी मांगना गुनाह नहीं है।
——————————————–

Language: Hindi
46 Views

You may also like these posts

सरदार भगतसिंह
सरदार भगतसिंह
Dr Archana Gupta
विटप बाँटते छाँव है,सूर्य बटोही धूप।
विटप बाँटते छाँव है,सूर्य बटोही धूप।
डॉक्टर रागिनी
बुंदेली दोहे- ततइया (बर्र)
बुंदेली दोहे- ततइया (बर्र)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
चमक वह जो तमस् मिटा दे
चमक वह जो तमस् मिटा दे
Mahender Singh
छंद मुक्त कविता : विघटन
छंद मुक्त कविता : विघटन
Sushila joshi
जो पहले थी वो अब भी है...!
जो पहले थी वो अब भी है...!
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
*** तुम से घर गुलज़ार हुआ ***
*** तुम से घर गुलज़ार हुआ ***
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
धनतेरस और रात दिवाली🙏🎆🎇
धनतेरस और रात दिवाली🙏🎆🎇
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
जिस दिल में ईमान नहीं है,
जिस दिल में ईमान नहीं है,
पंकज परिंदा
अब तो चरागों को भी मेरी फ़िक्र रहती है,
अब तो चरागों को भी मेरी फ़िक्र रहती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
❤️ मिलेंगे फिर किसी रोज सुबह-ए-गांव की गलियो में
❤️ मिलेंगे फिर किसी रोज सुबह-ए-गांव की गलियो में
शिव प्रताप लोधी
टूटे तारे
टूटे तारे
इशरत हिदायत ख़ान
"अर्थ और व्यर्थ"
Dr. Kishan tandon kranti
शादी
शादी
Shashi Mahajan
तड़प
तड़प
sheema anmol
संवेदना(कलम की दुनिया)
संवेदना(कलम की दुनिया)
Dr. Vaishali Verma
कोई ऐसा दीप जलाओ
कोई ऐसा दीप जलाओ
श्रीकृष्ण शुक्ल
पत्थर की अभिलाषा
पत्थर की अभिलाषा
Shyam Sundar Subramanian
ऐसा लगा कि हम आपको बदल देंगे
ऐसा लगा कि हम आपको बदल देंगे
Keshav kishor Kumar
देने वाले प्रभु श्री राम
देने वाले प्रभु श्री राम
इंजी. संजय श्रीवास्तव
आपको व आप के पूरे परिवार को नववर्ष की बहुत-बहुत बधाई एवं बहु
आपको व आप के पूरे परिवार को नववर्ष की बहुत-बहुत बधाई एवं बहु
Vishal Prajapati
वासना है तुम्हारी नजर ही में तो मैं क्या क्या ढकूं,
वासना है तुम्हारी नजर ही में तो मैं क्या क्या ढकूं,
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
जुदा   होते   हैं  लोग  ऐसे  भी
जुदा होते हैं लोग ऐसे भी
Dr fauzia Naseem shad
shikshak divas **शिक्षक दिवस **
shikshak divas **शिक्षक दिवस **
Dr Mukesh 'Aseemit'
मैं भी तुम्हारी परवाह, अब क्यों करुँ
मैं भी तुम्हारी परवाह, अब क्यों करुँ
gurudeenverma198
गुनगुनाने लगे
गुनगुनाने लगे
Deepesh Dwivedi
4458.*पूर्णिका*
4458.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
रिश्तों का बदलता स्वरूप
रिश्तों का बदलता स्वरूप
पूर्वार्थ
जो भुगत कर भी थोथी अकड़ से नहीं उबर पाते, उन्हें ऊपर वाला भी
जो भुगत कर भी थोथी अकड़ से नहीं उबर पाते, उन्हें ऊपर वाला भी
*प्रणय*
पुतले सारे काठ के,
पुतले सारे काठ के,
sushil sarna
Loading...