तुम्हारी फ़िक्र सच्ची हो...
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
अब तो मिलने में भी गले - एक डर सा लगता है
गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही ......
वफा
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
जिन्दगांणी
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ सब कहते हैं।
बेटी
पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
दो रुपए की चीज के लेते हैं हम बीस
आपके लबों पे मुस्कान यूं बरकरार रहे
कान्हा तेरी नगरी, आए पुजारी तेरे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जब मरहम हीं ज़ख्मों की सजा दे जाए, मुस्कराहट आंसुओं की सदा दे जाए।
अयोध्या धाम पावन प्रिय, जगत में श्रेष्ठ न्यारा है (हिंदी गजल
जिंदगी की राहे बड़ा मुश्किल है
रिश्तों से अब स्वार्थ की गंध आने लगी है