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12 Oct 2024 · 1 min read

काहे की विजयदशमी

काहे की विजयदशमी
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त्रेता में तो रावण एक था,
राम ने मार गिराया।
आज हजारों दशकन्दर है,
घर घर उसकी साया।

काम क्रोध मद लोभ छल,
ईर्ष्या चुगली निंदा।
झूठ कपट उदगोच अरु
पर नारी का संगा।

मद्य मांस और छीन झपट
रावन के आचार।
इन्ही पर कायम आज है,
बहु जन का व्यवहार।

जिन में ये गुण है बसे,
आदर उसी का होय।
रामादल में आजकल
जाता विरला कोय।

राम से सब कुछ चाहिए,
पर राम की न माने ।
रावण बसा है हृदय में,
राम कोई न पहचाने।

बाहर पुतला बारते,
अंदर बसी बुराई।
मन का रावण फूँकीये,
तब जीते अच्छाई।

जब तक हम हैं नौ द्वारों में,
सब कुछ केवल रश्मी।
दशमद्वार तक नहीं पहुँचे तो,
काहे की विजयदशमी।

Language: Hindi
103 Views
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