वह फूल हूँ
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
जिस दिन हम ज़मी पर आये ये आसमाँ भी खूब रोया था,
*शूल फ़ूलों बिना बिखर जाएँगे*
*आओ लक्ष्मी मातु श्री, दो जग को वरदान (कुंडलिया)*
ज्यादा अच्छा होना भी गुनाह है
आते जाते रोज़, ख़ूँ-रेज़ी हादसे ही हादसे
वो ख्वाब सजाते हैं नींद में आकर ,
कौन ये कहता है यूं इश्क़ में नया ठिकाना चाहिए,
अपने सपने कम कम करते ,पल पल देखा इसको बढ़ते
सामाजिक और धार्मिक कार्यों में आगे कैसे बढ़ें?
कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
तुम्हें सोचना है जो सोचो
Kunwar kunwar sarvendra vikram singh