Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Oct 2024 · 2 min read

#व्यंग्य

#व्यंग्य
✍🏻 हमारी बेशर्मी की चरम-सीमा….!!
【प्रणय प्रभात】
“मैं टेसू-छाप महाअड़ियल यह शपथ लेता/लेती हूँ कि इस सालH दीपावली पर चाइना (चीन) में निर्मित लाइटों (लड़ियों/झालरों को नहीं खरीदूंगा/खरीदूंगी। क्योंकि,
मेरे पास पिछले साल की खूब भरी पड़ी हैं, डिब्बों में। आज चैक भी कर ली हैं। पूरी तरह ठीक-ठाक हैं और खूब उजाला दे रही हैं। गए (गुज़रे) साल की तरह।।”
मतलब सीधा-सादा सा। हम सुधरने वाले नहीं। हम मन-वचन और कर्म से झूठे हैं अपने नेताओं की तरह। हमारे दावे, वादे, संकल्प खोखले हैं सरकारों की तरह। हमारे आडम्बर राजनीति से प्रेरित व प्रभावित हैं। राष्ट्रवाद हमारे और हमारे तंत्र के लिए बस नुमाइशी हैं।
आखिर में हमारे दुरंगेपन और दोहरे चरित्र का एक बड़ा खुलासा। जिस मोबाइल पर यह पोस्ट लिखी जा रही है वो “मेड इन चाइना” है। जिस पर पढ़ी जा रही है वो भी। दोषी हम नहीं हमारा सिस्टम है, जो पांव सलामत होने के बाद भी घटिया बैसाखी पर टिका है। जो हर तरह की आत्मनिर्भरता की बात कर मुफ्तखोरी, आरामखोरी और काला-बाज़ारी को प्रोत्साहित करता है। जिसका “लोकल” अपने लिए “वोकल” को एक बार में निचोड़ लेना चाहता है।
जी हां! हम वही हैं जो सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को एक बार में हलाल कर डालना चाहते हैं। भले ही बाद में सिर धुन कर रोना पड़े। हम “ऑनलाइन कारोबार” और “होम-डिलीवरी” को पानी पी-पी कर दिन-रात कोस सकते हैं। बस, अपने उन आचरणों को नहीं सुधार सकते, जिन्होंने “अतिथि देवो भव:” जैसी मान्यताओं को जड़ से खत्म करने का काम जारी रखा हुआ है। अपना पैर कुल्हाड़ी पर मार कर टसुए बहाने के हम आदी हो चुके हैं। कुल मिला कर न हम सुधरना चाहते हैं, न हमारे कथित भाग्य-विधाता हमें सुधरने देना चाहते हैं। मूल वजह है उनकी अपनी “सद्गति” की चाह, जो हमारी “दुर्गति” के बिना सम्भव नहीं। होली, दीवाली महज बहाना है। बंदर को हर हाल में मगरमच्छ से यारी निभाना है। केवल “दावत” और “रुतबे” के लिए। भले ही अपना कलेजा संकट में पड़ जाए।।
बस, यही है इंडियन प्रपंच डॉट कॉम👺
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
■सम्पादक■
●न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

Loading...