सैनिक
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
*कुल मिलाकर आदमी मजदूर है*
कोई पढे या ना पढे मैं तो लिखता जाऊँगा !
मैं तुम्हारी क्या लगती हूँ
मन-क्रम-वचन से भिन्न तो नहीं थे
"पहले मुझे लगता था कि मैं बिका नही इसलिए सस्ता हूँ
ख्वाब जब टूटने ही हैं तो हम उन्हें बुनते क्यों हैं
प्राण प्रतिष्ठा और दुष्ट आत्माएं
रातों में कभी आसमान की ओर देखना मेरी याद आएगी।