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17 Feb 2024 · 1 min read

स्तुति - दीपक नीलपदम्

रहो भवानी साथ तुम

जब तक हो पूर्ण ये काज,

नील पदम् व्रत ले लिया

कीजो सुफल सो काज।

श्रीमुख श्री गणेश जी

विरजो कलम में आय,

रहो सहाय नाथ तुम

ज्यों व्यास को भये सहाय।

जय माँ वीणावादिनी

छेड़ो सुर पंचम राग,

मधुर कंठ तुम आ बसो

बन जाओ मेरी आवाज।

नारायण उर में रहो

होयँ सुमंगल छंद,

मीठे सुर उपजें सदा

छिड़ ले ज्यों जल-तरंग।

पशुपतिनाथ, हे रूद्र-शिव

सर पे रखियो हाथ,

ज्यों छतरी गाढ़ी मिले

कितनेओ हो बरसात।

हाथ कलम वाला गहो

हे चित्रगुप्त महाराज,

कोई अनीति न हो सके

सदा लिखूँ मैं न्याय।

कामदेव रति तुम हँसो

मैं जब-जब लिखूँ श्रृंगार,

शब्द-शब्द महका करें

जैसे तुम लियेओ अवतार।

ओज हृदय उपजे कभी

षण्मुख दें आशीष,

विधुत सम स्याही खिंचे

काटें तलवारें शीश।

दुर्गा दुर्गतिनाशिनी

करो मात अवतार,

नारी विमर्श पर जब लिखूँ

तुम होवो सिंह सवार।

आशु कवि की योग्यता

मैं पाऊँगा श्रीराम,

कृपा आपकी हो गई

भाव बनें हनुमान।

पवन देव करिओ कृपा

यश दीजो जग बिखराय,

वरुण देव के संग में

ज्यों होरी रँग चढ़ जाए।

सुगम विचरते लोक सभी

ब्रह्मर्षि विख्यात,

ऐसो यशु लेखनी को मेरी

पाए चहुँदिश ख्याति।

सब देवों की स्तुति

जो भूले-बिसराय,

एक गरज सुनियो मेरी

सब हुइयो आय सहाय।

(C)@दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् ” (Deepak Kumar Srivastava “Neel Padam”)

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