कोई दुनिया में कहीं भी मेरा, नहीं लगता
जनाब पद का नहीं किरदार का गुरुर कीजिए,
*जैन पब्लिक लाइब्रेरी, रामपुर*
कभी-कभी कई मुलाकातों के बावजूद भी किसी से प्रेम नहीं होता है
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पेड़ सी सादगी दे दो और झुकने का हुनर डालियों से।
बैठी हूँ इंतजार में, आँधियों की राह में,
बिरखा
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
- तस्वीर और तकलीफ में साथ अपनो में फर्क -
हर एक चोट को दिल में संभाल रखा है ।
गीत
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
लब पे ख़ामोशियों के पहरे थे
"हे! कृष्ण, इस कलि काल में"
जब रंग हजारों फैले थे,उसके कपड़े मटमैले थे।
पुकारती हुई पुकार आज खो गयी है कही
सहसा यूं अचानक आंधियां उठती तो हैं अविरत,