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19 Sep 2024 · 8 min read

*रामपुर से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक पत्र*

रामपुर से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक पत्र
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(1) सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक
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13 जुलाई 1983 को मेरा विवाह श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त जी की सुपुत्री मंजुल रानी से हुआ । उसके उपरांत सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक का शायद ही कोई अंक ऐसा रहा हो जिसमें मेरी कोई न कोई रचना प्रकाशित न हुई हो। विवाह से पूर्व भी 1982 में प्रकाशित मेरी पुस्तक “ट्रस्टीशिप विचार” के विमोचन का समाचार सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक में लगभग एक पृष्ठ में प्रकाशित हुआ था । सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक में मैंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखनी चलाई। समाचार-लेखन, (रिपोर्टिंग ),पुस्तक-समीक्षा ,विचार प्रधान लेख , हास्य-व्यंग्य लेख ,कहानी ,कविताएँ आदि सभी क्षेत्रों में मैंने कलम आजमाई।

सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक महेंद्र प्रसाद गुप्त जी का पत्र था । 15 अगस्त 1959 को अपार लेखकीय उर्जा तथा पवित्र मनोभावों के साथ आपने इस साप्ताहिक पत्र का शुभारंभ किया था। मिस्टन गंज ,रामपुर स्थित आपका सहकारी युग प्रिंटिंग प्रेस इस हिंदी साप्ताहिक का कार्यालय बन गया और रामपुर की तमाम साहित्यिक तथा सब प्रकार की राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र स्थल कहलाने लगा । पचास वर्ष से अधिक समय तक सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक पूरी गरिमा और ओजस्विता के साथ प्रकाशित होता रहा। वर्ष 54, फरवरी 2013 से लेकर पिछले कुछ दशकों के सहकारी युग के अंक इन पंक्तियों के लेखक के पास सुरक्षित हैं। अंतिम वर्षों में साप्ताहिक का आकार लगभग आधा था। श्रीमती नीलम गुप्ता ने अत्यंत मनोयोग से अंतिम वर्षों में सहकारी युग की मशाल को अपने हाथों में थामा।

महेंद्र जी ने अपनी लेखनी की धार से भारत- भर के महान साहित्यकारों को इस पत्र के साथ इस प्रकार से जोड़ लिया था कि उन सब को यह पत्र अपना लगने लगा था । न केवल विशेषांकों में महान साहित्यकार अपनी रचनाएँ भेजते थे ,अपितु वर्ष-भर इस पत्र में प्रकाशित होने वाली रचनाओं पर समय-समय पर टिप्पणियाँ और प्रतिक्रियाएँ भी देते रहते थे । साप्ताहिक पत्र को सर्व श्री विष्णु प्रभाकर ,डॉक्टर उर्मिलेश, रमानाथ अवस्थी ,निर्भय हाथरसी आदि सुविख्यात साहित्यकारों की प्रतिदिन की टिप्पणियाँ और प्रतिक्रियाएँ मिलती रहती थीं, जिससे यह पत्र मूल्यवान बनता गया। महेंद्र जी निष्पक्ष विचारों वाले व्यक्ति थे तथा किसी दल विशेष से संबद्ध नहीं थे । उनके संबंध सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से मधुर थे। साहित्य में रुचि रखने वाले पाठक सहकारी युग को पसंद करते थे तथा इस पत्र में अपनी रचना को प्रकाशित होते देखकर लेखकों को गर्व का अनुभव होता था ।
पत्रकारिता के द्वारा महेंद्र जी लाखों रुपए कमा सकते थे लेकिन आपकी निर्लोंभी प्रवृत्ति थी तथा आपने कभी भी अपवित्र धन को कमाने की तरफ ध्यान नहीं दिया । रामपुर में ज्ञान मंदिर पुस्तकालय की जमीन तत्कालीन जिलाधिकारी आपके नाम कराने के इच्छुक थे । महेंद्र जी ने मना कर दिया । जिलाधिकारी ने कहा कि आप यह गलती कर रहे हैं ,आने वाले समय में लोग आपके त्याग को भूल जाएँगे । लेकिन महेंद्र जी अपने आदर्शों से तिल-भर भी नहीं हटे।
श्री महेंद्र जी की मृत्यु लगभग 88 वर्ष की आयु में 1 जनवरी 2019 को हुई थी। 2016 में आप की आत्मकथा “मेरी पत्रकारिता के साठ वर्ष” प्रकाशित हुई थी, जिसका श्रेय आपके घनिष्ठ आत्मीय श्री कमर रजा हैदरी नवोदित को जाता है । यह आत्मकथा एक प्रकार से महेंद्र जी के साठ वर्ष के सार्वजनिक जीवन का निचोड़ कही जा सकती है ।
महेंद्र जी का अंग्रेजी पत्रकारिता में भी बड़ा भारी योगदान था । साठ वर्ष तक आप टाइम्स ऑफ इंडिया ,पायनियर आदि समाचार पत्रों का संवाददाता के तौर पर प्रतिनिधित्व करते रहे । आखरी साँस लेते समय भी आप प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) के अधिकृत संवाददाता थे।
अनेक वर्षों तक महेंद्र जी की पुत्रवधू श्रीमती नीलम गुप्ता ने पत्र का प्रकाशन और संपादन करते हुए इसे जारी रखने में गहरी सार्थक रुचि ली ।
(2) रामपुर समाचार हिंदी साप्ताहिक
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1983 के आसपास के दौर में ही रामपुर से श्री ओमकार शरण ओम् द्वारा प्रकाशित एवं संपादित हिंदी साप्ताहिक रामपुर समाचार था। इसका शुभारंभ 26 जनवरी 1962 को हुआ था। रामपुर समाचार 55 वर्षों से अधिक समय तक प्रकाशित होता रहा। इसके प्रकाशक एवं संपादक कवि हृदय रहे। व्यावसायिक दृष्टि से अत्यंत कुशलतापूर्वक समाचार पत्र को चलाने में निपुण रहे ।
आपने रामपुर में टेलीफोन डायरेक्टरी का जो अभाव था, उसे अपने साप्ताहिक पत्र द्वारा दूर किया । रामपुर समाचार का प्रति वर्ष प्रकाशित होने वाला “टेलीफोन डायरेक्टरी विशेषांक” आपकी सूझबूझ ,कड़ी मेहनत और समय की आवश्यकताओं को पूरा करने की आपकी पारखी दृष्टि का परिचायक बन गया था। ऐसी अनूठी टेलीफोन डायरेक्टरी किसी हिंदी साप्ताहिक के मंच से प्रकाशित होती हो ,इसका उदाहरण दूसरा नहीं मिलता । रामपुर की स्थानीय प्रतिभाओं को भी आपने अपने साप्ताहिक पत्र के मंच से पर्याप्त प्रोत्साहित तथा पुष्पित – पल्लवित किया । पत्र की विशेषता यह थी कि इसका नियमित प्रकाशन होता रहा तथा पाठकों तक यह बराबर पहुँचता रहा ।
मेरा श्री ओमकार शरण ओम् से घनिष्ठ संबंध था तथा मैं उनके आत्मीय जनों की सूची में विशिष्ट स्थान रखता था। 1998 में जब आपका कविता संग्रह “धड़कन” शीर्षक से प्रकाशित हुआ ,तब आपने मुझे उस पुस्तक की भूमिका लिखने के लिए आमंत्रित किया। मैंने लिखी और वह “धड़कन : कविता संग्रह” में 4 प्रष्ठों में प्रकाशित हुई । “रामपुर समाचार” में मैंने कभी भी अपनी कोई रचना प्रकाशित होने के लिए नहीं भेजी, लेकिन मेरी साहित्यिक गतिविधियों के समाचार श्री ओमकार शरण ओम जी ने सहृदयतापूर्वक अपने पत्र में प्रमुखता से प्रकाशित किए । आपका जन्म 30 अप्रैल 1937 को हुआ था तथा 1952 में मात्र 15 वर्ष की आयु से आपने काव्य – साधना आरंभ कर दी थी ,ऐसा विवरण आपके कविता संग्रह में दर्ज है । आपकी मृत्यु 24 – 8 – 2021 को हुई
(3) रामपुर वाणी हिंदी साप्ताहिक
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“सहकारी युग” तथा “रामपुर समाचार” का ही एक समकालीन हिंदी साप्ताहिक रामपुर वाणी प्रकाशित हुआ। काफी समय तक यह एक साप्ताहिक अखबार के रूप में चला । इसका भी नियमित प्रकाशन होता था । रामपुर वाणी श्री अरुण बंसल का पत्र था । इसके संपादक श्री इम्तियाज उर रहमान खाँ थे। प्रकाशक और मालिक श्री अरुण बंसल थे । श्री अरुण बंसल सामाजिक व्यक्ति थे तथा रामपुर में उनकी काफी प्रतिष्ठा थी । पत्र का कोई साहित्यिक कलेवर तो नहीं था, लेकिन फिर भी रामपुर वाणी हिंदी साप्ताहिक अपने सामाजिक समाचारों तथा टिप्पणियों के साथ घर-घर में प्रवेश कर गया और इसका प्रचार – प्रसार काफी होने लगा। बाद में रामपुर वाणी हिंदी साप्ताहिक एक साँध्य – दैनिक के रूप में जनता के सामने आया और इसका यह स्वरूप भी लोगों की पसंद रहा ।
मैंने भी इस साँध्य दैनिक में 1990 – 95 के आसपास शायद साल – छह महीने तक रोजाना कोई न कोई लेख भेजा था ,जो या तो गंभीर विषय पर आधारित था या कोई हल्का-फुल्का हास्य – व्यंग्य हुआ करता था। इस तरह इन लेखों की संख्या भी सैकड़ों की संख्या में हो जाएगी। रामपुर वाणी साँध्य दैनिक ने मेरे उन लेखों को अपने संपादकीय- कालम में आदर पूर्वक स्थान दिया था, जिसके लिए मैं स्वर्गीय श्री अरुण बंसल का आभारी हूँ।
(4) प्रदीप हिंदी साप्ताहिक
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सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक का ही एक समकालीन पत्र प्रदीप हुआ करता था । इस हिंदी साप्ताहिक को रामपुर के प्रख्यात हिंदी लेखक तथा उर्दू के मशहूर शायर श्री रघुवीर शरण दिवाकर राही निकालते थे।आप एडवोकेट थे । “प्रदीप हिंदी साप्ताहिक” अपनी विचारोंत्तेजक टिप्पणियों तथा दिवाकर जी की धारदार लेखनी के लिए हमेशा जाना जाएगा । प्रदीप का पहला अंक 26 जनवरी 1955 को निकला तथा 18 जुलाई 1966 तक प्रदीप ने कुल मिलाकर लगभग साढे दस वर्ष तक रामपुर के सुशिक्षित समाज के हृदय पर शासन किया ।
जब मैंने 1985 में श्री दिवाकर जी से उनका जीवन – परिचय लिखने के उद्देश्य से भेंट की ,तब उन्होंने मुझे “प्रदीप” के बारे में बताया था । यह उनका मिशन था और हृदय के मनोभावों को व्यक्त करने का एक सात्विक साधन था । भेंट के समय वह प्रदीप के पुराने अंक मुझे दिखाने से चूक गए थे । अतः बाद में उन्होंने एक कवरिंग लेटर के साथ पुराने कुछ अंक मुझे भेजे थे और कहा था कि मैं इन्हें अपने पास ही रख लूँ। इस तरह इतिहास के वह अमूल्य पृष्ठ मेरी फाइल में स्वर्ण की तरह सुरक्षित हो गए। विचारों को लेकर जूझना , अड़ जाना और परिणामों की परवाह किए बिना अपनी जिद को चरम सीमा तक ले जाना ,यह दिवाकर जी की आदत थी जो उनके “साप्ताहिक प्रदीप” में भी स्पष्ट परिलक्षित होती है।
(5) ज्योति हिंदी साप्ताहिक
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रामपुर का सबसे पुराना हिंदी साप्ताहिक ज्योति था । मेरे पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ ज्योति का स्मरण बहुत गर्व के साथ करते थे। कारण यह था कि इसके प्रकाशन को शुरू करने से लेकर इसके चलाने तक में लंबे समय तक उनका योगदान रहा था । एक बार पत्र में कुछ ऐसी सामग्री किसी लेखक के द्वारा प्रकाशित हो गई, जिस पर अदालत में मुकदमा चला । तब पिताजी को भी अदालत के चक्कर काटने पड़े थे । इस तरह “ज्योति” का मेरे साथ एक आत्मीय संबंध रहा। पिताजी ने ज्योति साप्ताहिक में एक बार “पाठकों के पत्र” शीर्षक से पत्र लिखकर गाँधी पार्क ,रामपुर में सभा करने पर नगर पालिका द्वारा शुल्क लगाए जाने के खिलाफ व्यंग्यात्मक शैली में विरोध प्रकट किया था । उसकी प्रति मेरे संग्रह में है ।
मिस्टन गंज स्थित श्री राम कुमार जी की हिंदुस्तान प्रिंटिंग प्रेस में ज्योति हिंदी साप्ताहिक छपता था । ज्योति हिंदी साप्ताहिक के प्रकाशक शुरू से आखिर तक श्री रामरूप गुप्त जी थे, जो मेरे पिताजी के बहुत गहरे मित्र थे। आपके शुगर फैक्ट्री ,रामपुर स्थित आवास पर बचपन में मैं पिताजी के साथ जाता था । आपका भी प्रायः हमारे घर पर आना-जाना रहता था । वृद्धावस्था में भी आपका दिल्ली से रामपुर कुछ – एक बार हमारे घर पर आना हुआ था । आपका स्वभाव अत्यंत मधुर था तथा मैं आपको “ताऊ जी” कहकर पुकारता था । आप रामपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सबसे ज्यादा पुराने स्वयंसेवक थे । रामपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना का श्रेय श्री बृजराज शरण गुप्त जी (वकील साहब) को जाता है । ब्रजराज जी का संघ से परिचय कराने का श्रेय श्री राम रूप जी को ही जाता है।
“ज्योति” जनसंघ का मुखपत्र था। जनसंघ के कार्यकर्ता इसे प्रकाशित करते थे। इसमें जनसंघ की विचारधारा प्रतिबिंबित होती थी । जनसंघ के कार्यक्रमों तथा योजनाओं की सूचनाएँ इस पत्र के द्वारा प्रमुखता से पाठकों तक पहुंचाई जाती थीं। इसके संपादक श्री महेंद्र कुलश्रेष्ठ थे ,जो संघ की विचारधारा के प्रबल स्तंभ थे। असाधारण बुद्धि संपन्न ,लेखनी के धनी श्री महेंद्र कुलश्रेष्ठ अपने समय में जिस ओजस्विता के साथ न केवल संपादकीय लिखते थे अपितु वैचारिकता इस साप्ताहिक पत्र के द्वारा प्रस्तुत करते थे, उसका भी कोई जवाब नहीं था ।

इतिहासकार श्री रमेश कुमार जैन को लिखे गए 20 फरवरी 1987 के पत्र में रामरूप गुप्त जी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार श्री महेंद्र कुलश्रेष्ठ के बाद ज्योति के संपादक श्री रामरूप गुप्त जी बने। उसके बाद श्री बृजराज शरण गुप्त जी ने ज्योति के संपादक का कार्यभार ग्रहण किया। संपादन में सहयोगी के रूप में श्री रामेश्वर शरण सर्राफ तथा श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त का भी सहयोग रहा। ज्योति का कार्यकाल मात्र 3 वर्ष रहा। जून 1955 मेंज्योति बंद हो गया।

ज्योति हिंदी साप्ताहिक का प्रवेशांक 26 जून 1952 को प्रकाशित हुआ । काले अक्षरों के साथ पृष्ठ की छपाई होती थी तथा ऊपर की ओर लाल रंग से “ज्योति” बॉक्स बनाकर बड़े-बड़े टाइप में लिखा रहता था। लंबे समय तक इसी पैटर्न पर सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक भी निकला ।
इस तरह यह मेरा सौभाग्य रहा है कि रामपुर के हिंदी साप्ताहिक पत्रों के प्रकाशन एवं संपादन से जुड़े हुए महान हिंदी- सेवियो के जीवन ,कार्यों तथा उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के साथ मेरा गहरा जुड़ाव रहा । मुझे उनमें से अनेक व्यक्तियों के साथ जीवन – पथ की सुदीर्घ राहों पर चलने का अवसर मिला। यह साप्ताहिक पत्र मेरे लिए केवल इतिहास नहीं हैं, बल्कि अतीत के वह संस्मरण हैं जो अभी भी वर्तमान की तरह आँखों के सामने से गुजरते हैं । मैं उनसे जुड़े पात्रों को याद करता हूँ और रोमांचित हो उठता हूँ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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