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8 Sep 2024 · 1 min read

कुंडलिया

कुंडलिया

बढ़ती देखो जा रही, मंहगाई सरकार।
नहीं किसी को है पड़ी, दुखियों से दरकार।
दुखियों से दरकार, कोई कब उनका सोचे।
मौका पाकर देख, मांस सब उनका नोंचे।
उनपर ही हररोज, सभी पीड़ा है चढ़ती।
कैसे पालें पेट, दिनों-दिन चिन्ता बढ़ती।

डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली

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