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10 Aug 2024 · 1 min read

जब पीड़ा से मन फटता हो

जब पीड़ा से मन फटता हो
और बुनने वाला कोई ना हो
जब दिल के टुकड़े बिखरे हों
चुनने वाला कोई ना हो
जब दर्द शब्द में ढलकर भी
यू कंठ के अंदर सिमटा हो
जब लब कहने को आतुर हो
और सुनने वाला कोई न ही
तब मनकी पीड़ा आंखों के रहा से बाहर चलती है
में हल्का होते रहता हु
और दुनिया कायर समझती है।

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