क्या हुआ जो मेरे दोस्त अब थकने लगे है
जिन्दगी के सवालों का जवाब
हर ज़ुबां पर यही ख़बर क्यों है
पितामह भीष्म को यदि यह ज्ञात होता
कविता ही तो परंम सत्य से, रूबरू हमें कराती है
सबने सब कुछ लिख दिया, है जीवन बस खेल।
फिर लौट आयीं हैं वो आंधियां, जिसने घर उजाड़ा था।
घनाक्षरी
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
जो कभी रहते थे दिल के ख्याबानो में
सत्य का संधान
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
23/180.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
*दो दिन फूल खिला डाली पर, मुस्काकर मुरझाया (गीत)*
माता, महात्मा, परमात्मा...