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28 May 2024 · 1 min read

दिल-ए-मज़बूर ।

दिल-ए-मज़बूर ।

दिल-ए-मज़बूर दास्तान-ए-इश्क़ लेकर जाएं कहाँ ?
हम अपने रुतबे को और तुमको अब छुपाये कहाँ ?

शमा से जलकर गिरी है, जो जुगनुओं की अस्थियां
उन अस्थियों को इस गंदे बाजार में ले जाये कहाँ ?

हर दूसरा इंसान बेच रहा है खुद को, अपनों को
जो बिक जाते है बेमोल, उनको अब दफनाये कहाँ ?

कितने शातिर और घटिया लोग रहते है इस दुनियां में
अब हर दूसरे इंसान को हम , बंद कर के आये कहाँ ?

दिल-ए-मज़बूर आब-ए-चश्म लेकर जाएं कहाँ ?
हम अपने जख्म अपने हालात अब छुपाये कहाँ ?
तनहा शायर हूँ-यश

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