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17 May 2024 · 1 min read

मेरे पिता का गांव।

बहती नदी लहलहाते खेत,
कहीं धूप कहीं छांव,

पूर्वजों का दिया आशीर्वाद ये,
है मेरे पिता का गांव,

समय धारा में बह कर गांव से,
शहर आ गई जीवन की नाव,

दो-तीन साल में एक बार,
बुलाता ही है पिता का गांव,

खेतों-गलियों में चलते-चलते,
कभी थकते नहीं हैं पांव,

काश कि संभव हो पाता,
तो यहीं पर मैं रह जाता,

रहेगी कोशिश की बना रहे,
ताउम्र यहां से जुड़ाव,

जन्म भूमि ये मेरे पिता की है,
है अलग ही इससे लगाव।

कवि-अंबर श्रीवास्तव।

Language: Hindi
1 Like · 102 Views

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