Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
17 May 2024 · 1 min read

निभाने को यहाँ अब सब नए रिश्ते निभाते हैं

उसे जब भूख लगती है वो दाना ढूँढ लेता है
परिंदा शाम को फिर आशियाना ढूँढ लेता है

वो जिसका घर नहीं होता उसे भी नींद आती है
वो सोने के लिए अपना ठिकाना ढूँढ लेता है

निभाने को यहाँ अब सब नए रिश्ते निभाते हैं
जिसे दिल से निभाना हो पुराना ढूँढ लेता है

वो ऐसा भी नहीं है जो मुझे ख़ंजर से मारेगा
मुझे कुछ रंज हो ऐसा ही ताना ढूँढ लेता है

उसे जब छोड़ जाते हैं उसी के चाहने वाले
वो मुझसे बात करने का फ़साना ढूँढ लेता है

फ़क़त ख़ाना-बदोशों को भटकते देखा है हमने
निकलकर तीर भी अपना निशाना ढूँढ लेता है

जो माँझी रोज़ मीलों दूर रस्तों से गुज़रता था
पहाड़ों पर वही रस्ता बनाना ढूँढ लेता है

Loading...