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14 May 2024 · 1 min read

#ग़ज़ल

#ग़ज़ल
■ बोझिल रातें, दिन भारी हैं…!
【प्रणय प्रभात】
◆ बोझिल रातें, दिन भारी हैं।
फिर भी उसके आभारी हैं।।

◆ दुनिया के मेले में हम तुम
सैलानी हैं, व्यापारी हैं।।

◆ पता नहीं कब साथ छोड़ दें,
अब साँसें भी, बेचारी हैं।।

◆ कब जीते हैं दिन रातों से?
कब दिन से रातें हारी हैं??

◆ कुछ पल राहत, बाक़ी आहत,
सब उम्मीदें, त्यौहारी हैं।।

◆ सड़कों पर है धुंध सरीखी,
सारी गलियां, अंधियारी हैं।।

◆ तेरा, मेरा, इसका, उसका।
ये सब बातें, संसारी हैं।।

■संपादक■
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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