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6 May 2024 · 1 min read

ख़ामोशी यूं कुछ कह रही थी मेरे कान में,

ख़ामोशी यूं कुछ कह रही थी मेरे कान में,
बेबसी झलक रही थी किसी की मुस्कान में!

ये अमीर-सेठ तो कमबख़्त कारोबारी ठहरे,
थोड़ी हँसी बिक रही थी गरीब की दुकान में!!

यूं ही अकेले निकल पड़ा हूं मैं देखने को बाजार,
बोल ना पाया कुछ देख, काबले पड़े थे जबान में!

निकले आंसू से फीकी पड़ी थी सोने की चमक,
बुला रही सबको अपनी खाली दिल-ए-दुकान में!

दीया लिए इक टोकरी में, मैंने देखा उस बच्चे को,
मेरे दीए भी लेलो भईया, बोल थी उसके जुबान में!

हर तरफ़ माहौल खुशी का, मायूसी उसके चेहरे पे,
अब मैं मनाऊंगा दीवाली, उससे लिए दीपदान में!

यारों उसकी मेहनत खरीदो, दिल वाली दिवाली में
हर घर चमक उठेगा, उसकी छोटी सी मुस्कान में!

©️ डा. शशांक शर्मा “रईस”

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