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5 May 2024 · 1 min read

“भेड़ चाल”

कई बार पढ़े लिखे भी बिना सोचे ही किसी के पीछे लग जाते हैं,
और ऐसा करने के लिए वैज्ञानिता के कुतर्क भी घड़ लाते हैं।

आज पहचानना मुश्किल है कि इंसान कौन और भेड़ कौन,
जब जवाब नहीं बन पाता तो धारण कर लेते हैं मौन।

कौन कहाँ ले जा रहा है पीछे लगने वाले को पता नहीं,
आज बिना समझे ही किसी के पीछे लगना कोई खता नहीं।

कहीं भी ले जाएगा हम तो विश्वास में पीछे लगे हैं,
मार्गदर्शक मिल गया वरना हम तो सदा गए ठगे हैं।

आखिर में बोलते हैं कि विश्वास में सब लुटा आये,
विश्वास ऐसा अंधानुकरण का कि भेड़ भी शर्मा जाए।

आज के इंसानों में तो यह प्रथा सरेआम है,
अंधानुकरण के लिए बेचारी भेड़ ही क्यों बदनाम हैं।

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