Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Apr 2024 · 11 min read

विचित्र

समय समय पर एक अफवाह उड़ाए जाते हैं और लोगों को मूर्ख बनाए जा रहे हैं ।कौन ऐसा रोग फिर आया है जो एक-दूसरे के सटने मात्र से हो जाता है और लोग मर भी जाते हैं ।पहले मुंह नोचवा , फिर चोटी कटवा, फिर अब ये कौन सा रोग है “करोना” कि कोरोना पता नही क्या है ।चीन से आया है । आतंकवादी लाया है ।लाकर भारत में छोड़ा है । हट! फालतू का लोगों को पागल बनाने एक तरीका – – – ।
(पूरे देश में इस तरह की चर्चा चल रही है ।)चीनी समान को छूना नहीं है उसी से ये रोग फैल रहा है ।कई लोग, देश में विदेश में अविरल गति से मृत्यु के गोद में सोते चले जा रहे हैं बड़ा ही भयानक रोग है बड़ा ही – – – ।
अचानक मोदी जी के द्वारा यह घोषणा की जाती है कि “एक दिन सम्पूर्ण भारत बंद रहेगा “तथा संध्या काल में दीप जलाए जाएंगे , घंटी बजाई जाएगी ।संपूर्ण भारत एक दिन पूर्णरूप बंद रहता है ।शाम के समय दीप जलाए गए, शंख बजाए गए, घंटी बजाई गई, यहाँ तक कि थालियाँ भी बजाए गए । कई स्थानों पर तो लोगों के द्वारा समूह में भी इस तरह के कार्य किए गए ।हालांकि सामूहिक रूप से करने वालों की काफी निंदा भी की गई क्योंकि दूरियों के साथ इस कार्य को करना था जो समाचारों में पढ़ने, देखने और सुनने को मिला ।एक-दूसरे से दूरियां आवश्यक है ।
दूसरी बार फिर मोदी जी ने 21 दिनों तक सम्पूर्ण भारत को बंद करने की बात कही । जो जहाँ है वहीं रहेंगे ।न गाड़ियाँ चलेंगी, न बस चलेंगे, न कोई समान्य गतिविधियाँ होंगी, हाँ केवल अत्यावश्यक संस्थान, दुकान, हाॅस्पिटल – – – – ।पूर्णरूपेण दूरियों का पालन होना चाहिए ।अन्यथा दंड के अधिकारी होंगे ।
सीमा एक साधारण शिक्षिका थी ।उसकी एक आँचल नामक बड़ी ही लाडली बेटी होती है ।सीमा के पति बाहर एक साधारण निजी कंपनी में काम करते होते हैं ।सीमा की बेटी किसी कारणवश ननिहाल में पढाई करती होती है जो सी. बी. एस . ई की छात्रा होती है ।अभी अभी उसकी मैट्रिक की परीक्षा समाप्त हुई रहती है ।अचानक लाॅकडाउन होने के कारण सीमा और उसकी बेटी दोनों दो जगह पर अटक जाती है ।लाॅकडाउन भी दिनोंदिन बढ़ती ही जाती है ।इस कारण हर संस्था की भांति शैक्षणिक संस्थान पर भी ताले पड़े होते हैं ।सरकार के द्वारा घोषित किया गया होता है कि किसी भी बच्चे से दबाव पूर्वक शुल्क नहीं लिये जाये – – – ।हालांकि निजी संस्था में ।हर महीने की मासिक शुल्क लिये जा रहे थे ।अभिभावक भी कोई एक महीना के, कोई दो महीनों के, कोई नहीं तो कोई शिक्षण शुल्क देकर भार मुक्त हो रहे थे।
हर छोटे-बड़े शहर हो या गांव में संस्था या जिन धनवानों की इच्छा से लोगों को भोजन साग-सब्जी या घर के अत्यावश्यक सामग्री बांटे जा रहे थे ।इन विपदा की घड़ी में सरकार के द्वारा कहा गया था जिनके राशनकार्ड नहीं बने हैं उनके राशनकार्ड एक सप्ताह में में बना दिये जाएंगे और बनाए भी जा रहे थे वार्ड सदस्य की ईमानदारी पर ।सीमा के पास भी राशनकार्ड नहीं थे वह भी निवेदन की थी किन्तु अभी तक तो – – – ।घर के सामान भी धीरे-धीरे घटना जा रहा था ।
सरकार के द्वारा कहा गया था कि किसी भी कर्मचारी को शिक्षक को या कार्यरत लोगों को नौकरी से निकाला नहीं जाएगा और न ही उनके वेतन बंद किए जाएँगे ।हां!इस आपातकाल में कुछ प्रतिशत काट कर वेतन दिए जाएंगे ।किंतु निजी संस्था तो निजी ही होती है ।
अन्य शिक्षकों के साथ सीमा के भी वेतन बंद कर दिए गए थे ।उसके पास मात्र पहले से 5000रू थे जिसमें से वह अपनी बेटी के लिए होली में एक टाॅप-जिन्स दे चुकी थी लाॅकडाउन की भी सीमा नहीं और मंहगाई भी अपनी सीमा लाँघ चुकी थी ।हालांकि उसने दाल- चना-सोयाबिन खरीद चुकी थी ।जैसे-जैसे दिन कट रहे थे ।माँ बेटी के मध्य फोन के अतिरिक्त बातचीत का कोई और विकल्प नहीं था ।सीमा लाॅकडाउन से पहले एक बार अपने मायके गई थी वहीं सीमा का स्मार्ट फोन के चार्ज में लगे होने के कारण छूट गया था ।जो आँचल के पास रह गया था और एक साधारण फोन उसके पास रह गया था ।
सीमा :- देखो आँचल यदि तुम मैट्रिक की परीक्षा में 95% सेे ज्यादा नंबर लाओगी तो मैं तुम्हें एक सरप्राइज दूँगी जैसा अभी तक किसी ने नहीं दिया होगा न होगा ।
(सीमा परीक्षा से पहले से ही आँचल से ऐसा कहा करती थी )
आंचल:- सच्ची माँ ! हम तो बहुत अच्छी तरह से लिखे ही है पर क्या होगा पता नहीं देखो न अभी तक रिजल्ट भी नहीं निकला है ।क्या दोगी माँ! थोड़ा हिन्ड्स भी दो न !
सीमा :- नहीं! अभी नहीं!
एक दिन रिजल्ट निकलने की घोषणा भी हो जाती है ।आँचल अत्यधिक प्रसन्न होती है और सोचती है माँ हमें क्या सरप्राइज देगी? (सीमा के लिए आँचल ही सबकुछ है और आँचल के लिए सीमा ।)
आँचल अकसर एक गीत गाया करती है -डींग डींग, डींग डींगचिका- – मेरा कब रिजल्ट निकलेगा, माँ का कब पर्दा उठेगा, डींग डींगचिका – – – ।
दूसरी ओर प्रकृति भी अपनी तांडव का प्रदर्शन कर रही होती है । इस वर्ष तो सालों भर वर्षा हो ही रही है जो कोरोना के लिए सहायक सिद्ध हो रहा है ।लोगों में सर्दी-खांसी छूटने का नाम ही नहीं ले रहा है ।
इधर सीमा जैसी कई निजी संस्था में काम करने वालों की आर्थिक स्थिति अत्यधिक दुर्बल होती जा रही है क्योंकि कोई भी अर्थ की भरपाई करने वाला कोई और विकल्प नहीं था ।निजी संस्था वालों का कहना है कि “काम नहीं तो दाम नहीं “अभी संस्था घाटे में चलरही है । हम अपना घर बेच कर ,जमीन बेच कर कर तो काम करने वालों का पेट तो भर नहीं सकते हैं न? (हालांकि शैक्षणिक संस्थान में अभी भी शिक्षण शुल्क शिक्षकों के वेतन दिए जाने के नाम पर ही वसूली किये जा रहे हैं ।और शिक्षकों से कहा जाता है काम नहीं तो दाम नहीं ।)आपकी सहायता हम कैसे कर सकते हैं जब तक लाॅकडाउन है, तब तक कोई रास्ता नहीं है,” आपका जीवन आप जाने”।
समाज की एक विषम विडंबना है ।पूँजीपति अपने व्यापार में पूँजी लगाते हैं तो लाभ पाना उनका अधिकार है, कार्यरत लोगों को मुट्ठी भर वेतन के अतिरिक्त कुछ और पाने का अधिकार नहीं है ।बिल्कुल सही है ।व्यवसाय आपके, पूँजी आपकी, तो लाभ भी प आपकी ही होनी चाहिए, आपका अधिकार है ।चलिए सत्य प्रतिशत सत्य है, किंतु जब इसके विपरीत व्यवसाय में किसी प्रकार की हानि होती है तो उसकी भरपाई कार्यरत लोगों को करनी पड़ती है क्यों ?क्या आज कर्मचारी के व्यवसाय हो जाते हैं ?आज आपकी पूँजी नहीं होती है क्या? क्या आज धनपति के अधिकार समाप्त हो जाते हैं? आज भी उन्ही के व्यवसाय हैं तो घाटा भी उन्ही को सहनी चाहिए? उन्ही के – – – – ?लेकिन नहीं !क्यों? ? ?? ?????
धिक्कार है ऐसे समाज को !धिक्कार है !!!!! ऐसे समाज की व्यवस्था को! जहाँ दोहरी चाल चली जाती है ।
खैर !सीमा को भी अपने व्यवस्थापक से इसी तरह की वाणी सुनने को मिली ।काम नहीं तो दाम नहीं ।ऐसे व्यवस्थापकों से मेरा एक प्रश्न है “क्या आप बिना किसी शिक्षक के एक भी दिन विद्यालयी कार्य का का संचालन कर सकते हैं ? क्या उन अभागों के बिना विद्यालय में अध्ययन-अध्यापन हो सकते है ? जब पाठ्यक्रम उन्ही शिक्षकों को पूरी करने होंगे तो चाहे वह जैसे करें – – – – ।जबउन्ही को करनी होगी ?तो क्या आप उस दिन पूरे वर्ष भर के वेतन देंगे क्या ?जब साल भर का कार्य उनके द्वारा ही पूरा किया जाएगा तो आप – – – ??नहीं न? तो यह कहना उचित है काम नही —-।!!!!!!!!!
जब-जब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तो उन अभागों शिक्षकों के, कर्मचारी के, मजदूरों के – – – वेतन काटी जाती है ,उनकी ही छुट्टियाँ रद्द की जातीं हैं, उनके ही बच्चों के पर्वत्योहार मारे जाते हैं, आपदा-विपदा उनके ही बच्चों के खान-पान, पढ़ाई-लिखाई, हंसी-खुशी में होतीं हैं, उनके ही आनंद छिने जाते हैं, उन्ही के बच्चों की ——– ????????????
क्या कभी इन व्यवसायीके बच्चे मायूस होते हैं क्या? क्या कभी उनके जन्मदिन पर कहे जाते हैं इस बार ऐसा ही ——अगले साल धूमधाम से मनाए जाएंगे, क्या उनके बच्चे बड़े-बड़े विद्यालय से साधारण विद्यालय में स्थानांतरित किये जाते हैं? नहीं न? तो ऐसा क्यों? ?????
प्रकृति तू ही बता न्याय व्यवस्था की तो आँखें बंद है , उस पर पट्टी लगी है, यहाँ तो बाबा के अपराध की सजा हेतु पोते को फांसी की सजा सुनाई जाती है ।यहाँ तो सदैव निर्दोष ही मारे जाते हैं ।तुम्हारे दृष्टि में सभी समान हैं तो तुम्हारे दृष्टि-भेद क्यों? ऐसे कुटिल , कपटी, कलुषित मानसिकता वाले मानव के मस्तिष्क में बुद्धि के साथ साथ विवेक भी तो दो ——।यह सत्य है अपने-अपने पूर्व की कमाई के आधार पर लोग धनवान-निर्धन होते हैं परंतु क्या यह —– ।”जब धनवान के धन और निर्धन के तन से किसी भी कार्य को गति मिलती है , तो जीओ और जीने दो की बात क्यों नहीं करते क्यों कहा जाता है -काम नहीं तो —-।”
माँ? ????????।
अच्छा! अब समझ में आया! गरीब लोग श्रद्धा के नाम पर केवल पुष्प अर्पित करते हैं जो दो, चार, पांच दिनों में सूख जाते हैं उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है इस कारण उसे आप भूल जाते हैं और सोने के कलश तो धनवान ही चढाते हैं जो स्थायी क्या सदैव रहते हैं ।यही कारण है तुम्हारे मन भेद का क्या? तो सम्पूर्ण संसार उन्ही के सुपुर्द क्यों नहीं कर देती हो निर्धन अपने कर्मों की सजा भोग रहा है, उनमें चेतना क्यों देती हो, हृदय मत दो हृदय की गति ———।
“जी लेने दो धनवानों को,
रक्त शोषक इंसानों को ।”
ओह !धनवान और कर्म के मध्य साधारण लोग ही पीसने हैं ।सीमा भी उन्ही चक्की में पीसने वाली एक –थी अब उसके पास कहने को क्या हो सकता है —-।सीमा अपने आँचल से अत्यधिक प्रेम करती थी जिस कारण सदैव उसके ही विषय में सोचा करती है ।यहाँ तक कि अपने मोबाइल फोन में भी उसके नंबर हेतु रिंगटोन में गीत डाली थी :-
तेरे बिना धीया उमंग मेरा रोता है,
सपने सजालूँ बसंत नहीं होता है,
तू ही मेरी मन की कली,
लाडली तू मेरी लाडली, लऽ ल ऽ लाडली —–।जब भी आँचल का फोन आता है तो सीमा हर्षित हो जाती है ।
समय अपनी गति से चल रही है जैसे-तैसे ।अब उसके हाथ भी खाली हो गए थे ।अब उनके पास ₹257 ही शेष रह जाते हैं अब इन रूपों से वह अपना खाना खाए ,बेटी का मोबाइल रिचार्ज करें, ताकि मां बेटी की बातचीत हो सके या कौन सा कार्य करें समझ में नहीं आता है अब क्या करें क्या ना करें। इसी चिंता में वह अपने शरीर पर ध्यान नहीं दे पाती है । एक दिन अचानक उसे सांस लेने में परेशानी होने लगती है । वह डरते डरते हॉस्पिटल जाती है वहां पता चलता है कि वह कोरोना पॉजिटिव है। अस्पताल की स्थिति भी अच्छी नहीं है इस कारण उसे घर पर ही क्वॉरेंटाइन कर दिया जाता है। उसके मोहल्ले को सील कर दिया जाता है । सीमा के मन में एक साथ कई प्रश्न दौड़ते हैं इसका उत्तर पहले ढूंढे पता नहीं ।
जब स्त्री परेशान होती है तो उसका शुभचिंतक मायके वाले ही होते हैं। सीमा की तो सारी दुनिया ही वही थी अपनी बेटी से मिलने की व्यग्रता उसकी और तीव्र हो गई थी क्योंकि जीवन पर अब विश्वास नहीं रहा, कब आघात कर बैठे। कहा नहीं जा सकता है । सीमा ने अपने भाई को फोन लगाई तथा अपने को कोरोना ग्रस्त होने की बात कही । भाई भी सहोदर होने के कारण दुख व्यक्त किया । (उसने अपने भाई को अपनी बेटी से मिलने की बात कही )
सीमा:- भैया मेरे जीवन का कोई ठिकाना नहीं एक बार मुझे मेरी आंचल से मिलवा दो।
भाई:- नहीं! जानती नहीं, जानती हो कोरोना कितना घातक रोग है मेरे वृद्ध माता-पिता है, मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं ,नहीं!
सीमा :-बस भैया एक बार !
भाई :-नहीं! नहीं! तुम अपने स्वार्थ में अपने मायके वालों को ही मार देना चाहती हो कैसी हो तुम ?इस में दूरियां ही आवश्यक मानी जाती है। नहीं सीमा! नहीं!
सीमा :-भैया मेरे और मेरे आँचल के मध्य कितनी लंबी दूरियां होने वाली है जो कभी मिल ही नहीं सकते। मेरा मात्र 14 दिन का ही जीवन है।
भाई :-नहीं सीमा !तुम्हारे कारण हम अपने हँसते खेलते परिवार का विनाश नहीं कर सकते।
सीमा:- भैया एक ही बार बस एक बार दूर से ही दिखा दो ना ,फिर पता नहीं! (सीमा का हृदय फटता जा रहा था)
कहा जाता है जब-जब बहन पर कोई विपदा आती है तो भाई उसका ढाल बनकर खड़ा रहता है परंतु आज——। फोन कट हो जाता है। सीमा सोचती है क्यों ना मैं आंचल को अपने विषय में बताऊं ।मेरी मन की वेदना तो शांत हो सकती है ।नहीं! नहीं! मेरी आंचल का क्या होगा ,सोचते-सोचते आंचल का अन्यास फोन लग जाता है ।आँचल इस विषय से पूर्णरूपेण अनभिज्ञ के होती है उसे तो सरप्राइस की चिंता होती है।
आंचल :-मम्मा कैसी हो ?
सीमा:- (ह्रदय को थामते हुयी )हम ठीक हैं ।और तुम?
आंचल :-मम्मा हम ठीक हैं। आज मेरा रिजल्ट निकलने वाला है ।मेरा सरप्राइस तो भूल ही नहीं हो ना?
सीमा:-( भारी आवाज में ) नहीं बेटा ।
आंचल :-तुम ठीक हो ना मां ?
सीमा:- (सोचती है बता दूँ किंतु नहीं! उसके उमंग टूट जाएंगे और बताती है।) कल मेरा व्रत था ना शरबत पीने के कारण थोड़ी परेशानी है।
आंचल :-थोड़ा अपना केयर करो नहीं तो कुछ हो जाएगा तो मेरी मम्मा का होगा और मम्मा के आंचल का आई मीन लाडली का। आगे कहती है) हम बहुत खुश हैं। जानती हो, मेरा बैलेंस भी समाप्त हो जाएगा तो हम दोनों की बातचीत कैसे हो पाएगी? मात्र जियो टू जियो ही बात हो सकती है ,तुम पर नहीं ।हम बात कैसे कर सकेंगे ।कब आओगी?
सीमा :-( सीमा के आंखों से अविरल अश्रुधार बह रहे होते हैं ।सीमा मन में सोचती है मिलना तो असंभव है बेटा ।)हां जरूर। अब रखते हैं। और विलख विलख कर रोने लगी। सुनने वाला कोई नहीं! कोई नहीं!
दोपहर भी बीता,शाम बीती पर रिजल्ट भी नहीं आया। आँचल की प्रतीक्षा की घड़ी लंबी होती जा रही है, और सीमा की जीवन छोटी।
सीमा अपने विचारों में इस प्रकार खो गई उसे कुछ दिख ही नहीं रहा है सोचते-सोचते पलंग से उतरने लगी इसी समय साड़ी से पैर फंस गया और वह लड़खड़ा कर गिर गई ।पलंग के नीचे रखें ईंट से उसके हाथ में भयानक चोट और खरोच लग जाता है। (सीमा कराहती है) ।आह! हाथ छिला गया !उठना चाहती है किंतु शरीर और मन से इतनी दुर्बल हो जाती है कि अपने आप को जमीन से उठा नहीं पाती है और नीचे ही पड़ी रह जाती है ।इस विपरीत परिस्थिति में भला चीटियां क्यों छोड़े; खरोच वाले स्थानों पर काटती है सीमा के हाथ से ही हिला कर हटाती है चींटी छिटक जाती है और बार बार फिर काटने लगती है।
अगले दिन मैट्रिक परीक्षा का रिजल्ट निकलता है आँचल के खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसके ननिहाल में उसके अतिरिक्त सबों को ज्ञात हो जाता है कि उसकी मां को कोरोना हो गया है फिर भी आंचल के रिजल्ट को देख सुनकर आपके चेहरे पर मुस्कान दिखते हैं। वो कहती है मैं सबसे पहले मम्मा को बताऊंगी और मां को फोन लगाती है। मम्मा मेरा फोन उठा लेना। फिर लगेगा या नहीं, पता नहीं ।तुम मात्र 95% ही बोली थी ना मुझे तो ज्यादा से भी ज्यादा है फोन उठाओ ना मम्मा मेरा सरप्राइज मेरा स र प्रा इ ज फोन उठाओ।
इधर जैसे ही फोन पर गीत शुरू होती है ‘तेरे बिना धीया उमंग मेरा रोता है, सपने सजा लूँ बसंत नहीं——। सीमा के चेहरे पर हल्की अस्मिता छाती है, अब चीटियों के काटने पर भी सिहरन नहीं होता ।अर्ध खुली आंखें चेहरे पर भीगी भीगी अस्मिता गीत के समाप्त होते ही वातावरण शांत हो जाता है मानो प्रकृति के संपूर्ण अवयव ही शांत हो गए हों।अचेतन अवस्था में सब के सब चले गए। शांत! शांत हो गए !सिर्फ एक चीटियों के पद ध्वनि के।
समाप्त
उमा झा

2 Likes · 168 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from उमा झा
View all

You may also like these posts

हम कहाँ कोई जमीं या
हम कहाँ कोई जमीं या
Dr. Sunita Singh
लेकिन क्यों ?
लेकिन क्यों ?
Dinesh Kumar Gangwar
श्री चरणों की धूल
श्री चरणों की धूल
Dr.Pratibha Prakash
नरसिंह अवतार
नरसिंह अवतार
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
अभी भी जारी है जंग ज़िंदगी से दोस्तों,
अभी भी जारी है जंग ज़िंदगी से दोस्तों,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जब सत्य प्रकाशमय हो
जब सत्य प्रकाशमय हो
Kavita Chouhan
अगर कभी....
अगर कभी....
Chitra Bisht
Two Different Genders, Two Different Bodies And A Single Soul
Two Different Genders, Two Different Bodies And A Single Soul
Manisha Manjari
हमनवा
हमनवा
Bodhisatva kastooriya
*भरोसा हो तो*
*भरोसा हो तो*
नेताम आर सी
"मौका मिले तो"
Dr. Kishan tandon kranti
“Your work is going to fill a large part of your life, and t
“Your work is going to fill a large part of your life, and t
पूर्वार्थ
4252.💐 *पूर्णिका* 💐
4252.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
*कलम (बाल कविता)*
*कलम (बाल कविता)*
Ravi Prakash
एकाकार
एकाकार
Shashi Mahajan
,,,,,
,,,,,
शेखर सिंह
आविष्कार एक स्वर्णिम अवसर की तलाश है।
आविष्कार एक स्वर्णिम अवसर की तलाश है।
Rj Anand Prajapati
*सुकुं का झरना*... ( 19 of 25 )
*सुकुं का झरना*... ( 19 of 25 )
Kshma Urmila
પૃથ્વી
પૃથ્વી
Otteri Selvakumar
एक अधूरे सफ़र के
एक अधूरे सफ़र के
हिमांशु Kulshrestha
मै पत्नी के प्रेम में रहता हूं
मै पत्नी के प्रेम में रहता हूं
भरत कुमार सोलंकी
मन की संवेदना
मन की संवेदना
Dr. Reetesh Kumar Khare डॉ रीतेश कुमार खरे
” आलोचनाओं से बचने का मंत्र “
” आलोचनाओं से बचने का मंत्र “
DrLakshman Jha Parimal
वित्त मंत्री, बज़ट, टेबलेट, क़ाफ़िला, गाड़ी और साड़ी। सब पर मीडिय
वित्त मंत्री, बज़ट, टेबलेट, क़ाफ़िला, गाड़ी और साड़ी। सब पर मीडिय
*प्रणय प्रभात*
अगर आपमें क्रोध रूपी विष पीने की क्षमता नहीं है
अगर आपमें क्रोध रूपी विष पीने की क्षमता नहीं है
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
अधूरा एहसास(कविता)
अधूरा एहसास(कविता)
Monika Yadav (Rachina)
शुभकामना संदेश.....
शुभकामना संदेश.....
Awadhesh Kumar Singh
लोगो का व्यवहार
लोगो का व्यवहार
Ranjeet kumar patre
अपने साथ गलत करने वालों को जरूर याद रखो ..
अपने साथ गलत करने वालों को जरूर याद रखो ..
Vishal Prajapati
Loading...