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21 Apr 2024 · 1 min read

दरवाज़े

मैने अपने दिल के दरवाजे तो खोल रखे है!
राहगीर भी देख सकता है कौन-कौन रखे है?
इस्तकबाल हर उस शख्स का जो साफगोई,
चेहरे से नही,आज़माकर दोस्त-दुश्मन रखे है!!
नही चाहिए सौहबत मुझे किसी ऐसे शख्स की,
जिसने गुलदस्ते के बीच खंज़र छुपाए रखे है!!
बेशक मेरी उससे दूर की भी रिश्तेदारी नही,
मैने रिश्तेदार भी बखूबी.खूब आज़मा रखे है!!
अब तो खतो-किताबत का दौर गुम हो गया,
फोन से भी महज़ सलाम-दुआ बचा रखे है!!
जिस भाई का नाम मेरे साथ लिया जाता था,
गोया उससे भी सौ कदम की दूरी बना रखे है!!

मौलिक सर्वाधिकार सुरछित रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुजं,फेस-2,सिकंदरा,आगरा-282007

1 Like · 104 Views
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