*दो दिन सबके राज-रियासत, दो दिन के रजवाड़े (हिंदी गजल)*
सत्य वर्तमान में है और हम भविष्य में उलझे हुए हैं।
नज़रें बयां करती हैं, लेकिन इज़हार नहीं करतीं,
न जाने क्या ज़माना चाहता है
"अमरूद की महिमा..."
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
यही रात अंतिम यही रात भारी।
आवारग़ी भी ज़रूरी है ज़िंदगी बसर करने को,
ख़ुद पे गुजरी तो मेरे नसीहतगार,
वक्त
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जिनिगी के नइया डूबल जाले लोरवा में
हर वक़्त सही है , गर ईमान सही है ,
देश हमारी आन बान हो, देश हमारी शान रहे।
विचार, संस्कार और रस [ तीन ]
सहमी -सहमी सी है नज़र तो नहीं
लेकिन हम सच्चा प्यार, तुमसे नहीं करते हैं
तुम्हें करीब आने के लिए मेरे,