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1 Apr 2024 · 1 min read

कचनार kachanar

कचनार
लहलहाते पत्तों से सजे
विहॅस रही कलियों
अधखिले पुष्पों को
अपने शाखाओं में
हार के तरह धारण किये
वसन्त के स्वागत के लिए
आतुर है
कचनार।
शीतल वायु,गुनगनी धूप
से नये जीवन की धारा
प्रवाहित करने के लिए
प्रकृति की सुषमा
निखरेगी गुलाबी पुष्पों से।
वासंती हवा में सर्वांग सराबोर
कचनार आतुर है अपने
सौंदर्य से प्रकृति की छटा
बिखेरने के एक प्रबल पात्र
के तरह
सबल आधार।
ज्यों -ज्यों रससिक्त कलियां
प्रमोद के उन्मुक्त गगन में
तादात्म्य स्थापित करती हैं
हॅसती हैं,नये कलेवर में
सांस लेती हैं
कलियों से पुष्प बन जाना
सहज नहीं है।
सींचता है बागवान
अपने कठिन श्रम से,
नेह की
पावन धार ।
गुलाबी फूल जब खिलते हैं
बढ़ता है सौंदर्य
खिलता कोविदार।
वसन्त के स्वागत में
अपने हर्ष से
गाता है गीत, करता है स्वागत
प्यारा कचनार।।

**मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘
31मार्च 2024
रविवार
चित्र साभार फेसबुक वाल से

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