हाँ वो लिपस्टिक रक़ीब लगती है
कभी गुज़र न सका जो गुज़र गया मुझमें
सगळां तीरथ जोवियां, बुझी न मन री प्यास।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
गीत/भजन- कहो मोहन कहो कृष्णा...
जुदाई
Prithvi Singh Beniwal Bishnoi
मैने यह कब कहा की मेरी ही सुन।
है कहीं धूप तो फिर कही छांव है
परीक्षाएँ आ गईं........अब समय न बिगाड़ें
तुमको अच्छा तो मुझको इतना बुरा बताते हैं,
मन मेरा क्यों उदास है.....!
फ़ना से मिल गये वीरानियों से मिल गये हैं
फ़ेसबुक पर पिता दिवस / मुसाफ़िर बैठा
फसल , फासला और फैसला तभी सफल है अगर इसमें मेहनत हो।।