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1 Apr 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

रस्ता, मंजिल बातें हुईं पुरानी अब,
नये शब्द में लिक्खें नई कहानी अब ।

बीमारी से आज की पीढ़ी लड़ती है,
खाद केमिकल खाकर पले जवानी अब ।

प्यास तिज़ारत कुछ लोगों की हाथों में ,
बेचें हमको हमी से लेके पानी अब ।

लोग बदी में ढूँढ रहें हैं अपनी खुशियाँ,
अच्छी आदत लगने लगी नादानी अब ।

ख़ुद पे यकीं नही है यकीं को इंसा क्या ,
करें फरिश्ते भी जैसे शैतानी अब I

कौतूहल का रंग लगे है फीका यूँ ,
कुछ भी होता होती नहि हैरानी अब I

भाव किताबी इंसा की इंसानियत I
‘महज़’ रह गयी बनके एक निशानी अब ।

Language: Hindi
2 Likes · 107 Views
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