**हो गया हूँ दर-बदर, चाल बदली देख कर**
बे’क़रारी से राब्ता रख कर ,
बड़ी कथाएँ ( लघुकथा संग्रह) समीक्षा
लागे न जियरा अब मोरा इस गाँव में।
एक चिंगारी ही काफी है शहर को जलाने के लिए
सागर ने जब जब हैं हद तोड़ी,
खिलेंगे फूल राहों में
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मानव आधुनिकता की चकाचौंध में अंधा होकर,
मुश्किलों से हरगिज़ ना घबराना *श
उड़ान ऐसी भरो की हौसलों की मिसाल दी जाए।।