रहे सीने से लिपटा शॉल पहरेदार बन उनके
पिता जी
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
एक दिन मजदूरी को, देते हो खैरात।
ग़ज़ल (चलो आ गयी हूँ मैं तुम को मनाने)
गुरु महाराज के श्री चरणों में, कोटि कोटि प्रणाम है
''संगनी मैं तुम्हारी बन आई ''
मन को सम्भाले मन का कोई चेहरा नहीं है, आत्मा का भी कोई चेहरा
****जिओंदा रहे गुरदीप साड़ा ताया *****
लगता नहीं है इस जहां में अब दिल मेरा ,
अब मै ख़ुद से खफा रहने लगा हूँ
जनदृष्टि संस्थान, बदायूँ द्वारा "राष्ट्रीय उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान-2024" से सम्मानित हुए रूपेश