हंसी आ रही है मुझे,अब खुद की बेबसी पर
- अब सबकुछ धुधला - धुधला लगता है -
दोहा पंचक. . . . . नटखट दोहे
अपूर्ण नींद और किसी भी मादक वस्तु का नशा दोनों ही शरीर को अन
गुलों की क़बा को सिया भी नहीं था
साहित्य का बुनियादी सरोकार +रमेशराज
ईश्क में यार थोड़ा सब्र करो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
सिर्फ पार्थिव शरीर को ही नहीं बल्कि जो लोग जीते जी मर जाते ह
Dr Arun Kumar shastri एक अबोध बालक अरुण अतृप्त
बदलती जरूरतें बदलता जीवन
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
प्रेम और घृणा से ऊपर उठने के लिए जागृत दिशा होना अनिवार्य है