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13 Feb 2024 · 1 min read

21. तलाश

शब्दावली नहीं करती बयां
मेरी कितनी तकलीफें रहीं ,
ये तो उनके दर्द को कहती है
जिनको कहना था बाकी रहा।

स्याही तुम्हारे होंठों सी
गुलाबी नहीं होती थी कभी ,
हम इश्क के नज़ारे गढ़ते रहे
जिनका रंग काला ही रहा ।

तलाश चाहत की जारी रही
बस इश्क मिलना बाकी रहा,
कहना सके हम दिल की बातें
दिल करता तैयारी रहा।

मजलिशों में भी गुमसुम रहे
महफिलों में जा ना सके,
अल्फ़ाज़ भी सारे खोते गए
लब तो हिला पर भारी ही रहा।।

~राजीव दत्ता ‘घुमंतू’

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