Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
15 Feb 2024 · 1 min read

*इंसानियत का कत्ल*

इंसान को हैवान बनते देखा है
अब तुम्हें क्या कहूं मैं
वहशी दरिंदों! देखकर क्रूरता तुम्हारी
शर्मसार हो गया हूं मैं

शर्मसार है माँ भारती
जिसकी धरापर ये कुकृत्य हुआ
सरेआम नग्नकर बेटियों को
उनके जिस्म से जो खिलवाड़ हुआ

नहीं हुआ अपराध सिर्फ़ नारी के साथ
हत्या कर गए थे उस दिन इंसानियत की भी कोई
जो भी कर रहा था दरिंदगी वहां
न इंसान था, न जानवर, था वो वहशी कोई

है शरम गिद्धों में तुमसे ज़्यादा
नहीं नोचते कभी वो भी ज़िंदा जिस्म
खेलता है नारी की असमत से जो
एक दिन हो ही जाता है वो भी भस्म

शरमा जाएंगे जानवर भी
देखकर ऐसा क्रूर व्यवहार
मिले सज़ा ऐसी वहशियों को
हिल जाए दरिंदों के तार

क्रूरता की है जिसने
क्रूरता उसपर भी दिखाई जाए
इंसानियत के हत्यारों पर
कोई नरमी न दिखाई जाए

है अर्ज़ यही हुकमरानों से
वहशियों को ऐसी सज़ा दिलाई जाए
काँप जाए रूह भी उसकी
जो किसी के मन में भी फिर ऐसा विचार आए।

(मणिपुर हिंसा के दौरान महिलाओं के साथ हुई बर्बरता की घटना के परिप्रेक्ष में)

Loading...