पाखी खोले पंख : व्यापक फलक की प्रस्तुति
पाखी खोले पंख : व्यापक फलक की प्रस्तुति
प्रगतिशील प्रकाशन, नई दिल्ली से 2017 में प्रकाशित श्रीधर प्रसाद द्विवेदी की पुस्तक ‘पाखी खोले पंख ‘जो एक दोहा सतसई है को पढ़ने का अवसर मिला। पुस्तक को पढ़ने का एक मात्र कारण दोहा छंद के प्रति मेरा लगाव एवं द्विवेदी जी की लेखन शैली रही।
पुस्तक की भूमिका उनके साहित्यिक गुरु डाॅ. हरेराम त्रिपाठी’ चेतन ‘जी ने लिखी है, जिसमें उन्होंने दोहा छंद की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई है।दोहा छंद के विषय में दी गई जानकारी एक शोधपरक विवेचनात्मक लेख से कम नहीं है।साहित्यानुरागियों के लिए भूमिका अमूल्य धरोहर जैसी है।
आज जब छांदस रचनाओं के प्रति लोगों का रुझान कम होता जा रहा है, ऐसे समय में द्विवेदी जी द्वारा लोकप्रिय एवं प्राचीनतम छंदों में से एक दोहा छंद में लेखन स्तुत्य प्रयास ही माना जाएगा। आज लोग या तो गज़ल लिख रहे हैं या फिर अतुकांत कविताएँ, जिसमें यति, गति ,लय वर्ण और मात्राओं की गणना जैसा कोई झंझट नहीं है। इतना ही नहीं एक वर्ग विशेष द्वारा ऐसे लेखन को स्थापित और महिमामंडित भी किया जा रहा है ।परंतु द्विवेदी जी द्वारा पारंपरिक दोहा छंद में लेखन करना इस बात का द्योतक है कि आज भी दोहे की लोकप्रियता और उपादेयता असंदिग्ध है ।
‘पाखी खोले पंख’ पुस्तक के दोहे 11 भागों में वर्गीकृत हैं-1 विनय 2 दोहा प्रशस्ति 3 मौसम के रंग हज़ार 4 पाखी खोले पंख
5 सेमल शीश गुलाल 6 आज आ गई याद 7 बेटी जन्म अमोल है 8 राजनीति का अर्थ 9 गौरैया गुमनाम 10 अटपट वाणी बोल और 11 लगा नकल का रोग।
‘विनय’ खण्ड में कवि के 36 दोहे संकलित हैं। सर्वप्रथम कवि विघ्न- विनाशक गणेश की स्तुति के साथ दोहा सतसई का आरंभ किया है ।तत्पश्चात माँ वीणा पाणि की आराधना से संबंधित दोहे हैं।इसके अतिरिक्त भोलेनाथ, माँ पार्वती,प्रभु श्रीराम और नव दुर्गा की स्तुति के साथ समापन किया है ।माँ सरस्वती की स्तुति से संबंधित यह दोहा दृष्टव्य है –
श्वेत वर्ण भूषन वसन,सुमन सरोज सवार।
वीणा पुस्तक धारिणी, विमल बुद्धि दातार।।
कवि माँ शारदे की वंदना अत्यंत कोमल कांत पदावली में अनुप्रास की छटा के साथ की है,जो निश्चय ही प्रशंसनीय है ।
द्वितीय खण्ड ‘दोहा प्रशस्ति ‘में कवि ने दोहों दोहा छंद विधान का परिचय देते हुए 23 दोहे सम्मिलित किए हैं।इन दोहों में दोहे को आधार बनाकर लिखे जाने वाले छंदों का भी उल्लेख किया है;जैसे-
दोहा और उल्लाला छंद के योग से बनने वाला छप्पय छंद, दोहा और रोला को मिलाकर बनने वाला कुंडलिया छंद और दोहा-मुक्तक ।
कवि के अनुसार दोहे के माध्यम से जन- कल्याणकारी बात को बखूबी उठाया जा सकता है ।दोहे में लिखे गए भाव मन- प्राण को शीतलता प्रदान करते हैं। दोहे के मारक प्रभाव को परिलक्षित करता यह दोहा ध्यातव्य है-
कविता सरिता सी बहे,शीतल हो मन प्राण।
सरस तरल आह्लादकर,भाषे जन कल्याण।।
तीसरे खण्ड ‘मौसम के रंग हज़ार ‘में 92 दोहे संकलित हैं।इन दोहों में कवि ने वर्षा , गर्मी ,शीत सभी का सटीक चित्रण किया है । प्रकृति के सुंदर चितेरे के रूप में कवि ने कमाल की प्रतिभा का परिचय दिया है।’मौसम के रंग हज़ार’में कवि ने न केवल प्रकृति चित्रण किया है वरन सामाजिक विसंगति पर भी करारा प्रहार किया है।शीत ऋतु में समाज के वर्गों के मध्य की खाईं बढ़ जाती है ।कवि का एक दोहा इस संबंध में उल्लेखनीय है –
आग-अँगीठी घेरकर,बैठे बालक वृद्ध ।
शाल दुशाला लाद तन,दुबके भवन समृद्ध ।।
ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली लू और पानी की किल्लत जग जाहिर है ।इस समस्या को कवि ने अपने दोहे में बड़ी सहजता से व्यक्त किया है –
पशु-पक्षी पानी बिना,भटक रहे बेचैन।
पवन प्रवाहित आग बन,चैन नहीं दिन- रैन।।
चौथे खंड ‘पाखी खोले पंख ‘में 32 दोहे संकलित है।इस खंड में कवि मुख्यतः प्रातःकालीन सौंदर्य का मधुरिम चित्र उकेरता है। इन दोहों के माध्यम से कवि ने एक सुंदर संदेश देने में भी सफल हुआ है।एक दोहा देखिए –
प्रथम रश्मि आ सूर्य की, दी उजास उपहार।
तमस तिरोहित कर सुबह,खोलो मन का द्वार।।
पुस्तक का पाँचवा खण्ड है ‘सेमल शीश गुलाल ‘जिसमें कुल 49 दोहे हैं। इन दोहों में बसंत का मादक चित्र खींचा गया है। हृदय को छूने वाला एक दोहा दृष्टव्य है –
देख लता नवमल्लिका,झुकी कुसुम के भार।
अस्त व्यस्त किसने किया, मलिन सुभग श्रृंगार।।
छठा खण्ड ‘आज आ गई याद’में कुल 20 दोहे हैं।इन दोहों में कवि बचपन की मीठी यादों में खो जाता है।एक दोहा देखिए, जो आपको चने के खेत में साग खोंटने और खाने की याद दिला देगा-
बैठ चना के खेत में,साग खोंटना याद।
लहशुन मिर्चा नमक का,मिटा न मन से स्वाद।।
‘बेटी जन्म अमोल है ‘ में 17 दोहों का सातवाँ खण्ड है जिसमें ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ मुहिम को लेकर चल रहा है। सृष्टि के नैरंतर्य के लिए बेटियों को बचाना अति आवश्यक है। बेटियों की महत्ता को समर्पित कवि का दोहा ध्यातव्य है –
घर पावन करती सदा,बेटी तुलसी गाय।
इनका आदर मान हो,लक्ष्मी रहें सहाय।।
‘राजनीति का अर्थ’ आठवें खण्ड में द्विवेदी जी ने वर्तमान दूषित राजनीतिक परिवेश को अपने 20 दोहों में बखूबी उकेरा है।राजनीति आज जन सेवा का माध्यम न होकर स्वार्थ केंद्रित हो गई है। खोखली नारेबाजी द्वारा वोट लेना मुख्य शगल बन गया है –
आश्वासन की फसल बो,माँग रहे वे वोट।
बाजी आए हाथ जब,करो वोट की चोट।।
पुस्तक का नौवाँ खण्ड है – ‘गौरैया गुमनाम’। इस खण्ड में प्रदूषित होते वातावरण के प्रभाव को चिन्हित करते 17 दोहे हैं। प्रकृति का प्रभाव जीव-जंतु, पशु – पक्षी सभी पर पड़ रहा है। पशु – पक्षियों की लुप्त होती प्रजातियाँ चिंता का कारण बन रही हैं।कवि की चिंता उचित है –
पता नहीं किस तरह से,गिद्ध गए सुरधाम।
बिगड़ा अब पर्यावरण, गौरैया गुमनाम ।।
‘अटपट वाणी बोल’पुस्तक का दसवाँ खण्ड है।इस खण्ड में कवि सामाजिक विद्रूपताओं पर व्यंग्य के माध्यम से प्रहार किया है।इस खण्ड में कुल 382 दोहे हैं।भ्रष्ट मीडिया पर प्रहार करता एक दोहा देखिए –
सफल खिलाड़ी मीडिया, करती तिल का ताड़।
अभिनेता एंकर बड़ा, बहस लड़ाते भाड़।।
वृद्धावस्था में एक बेबस बीमार पिता की लाचारी दोहे में दृष्टव्य है –
पुत्र गया परदेश में,मालिक घर बीमार।
समय बड़ा विपरीत है, कौन उठाए भार।।
ग्यारहवाँ और अंतिम खण्ड है -‘लगा नकल का रोग’। प्रस्तुत खण्ड में कवि ने युवा वर्ग द्वारा पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति को अपनाने और अपनी परंपरा के प्रति उपेक्षा से दुखी है। इस खंड में कुल 9 दोहे हैं।कवि का स्पष्ट मत है कि पश्चिम का अंधानुकरण हितकारी नहीं है-
देखा-देखी अनुकरण, करनी उचित न रीति।
सोच समझ अपनाइए,अपने कुल की रीति।।
पुस्तक का सांगोपांग विवेचन करने से स्पष्ट होता है कि भाव और भाषा की दृष्टि से कवि अतीव परिपक्व और समृद्ध है, पर कहीं – कहीं व्याकरणगत अशुद्धियाँ खटकती हैं।ठीक इसी तरह कुछ दोहों पर और अधिक समय दिए जाने की आवश्यकता थी जिससे कृतिकार का कृतित्व अधिक प्रभावी हो सकता था।
अस्तु, समग्रतः देखने पर स्पष्ट है कि श्री श्रीधर प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित ‘ पाखी खोले पंख ‘ छांदस रचना का एक प्रशंसनीय प्रयास है। पाठकों के लिए प्रेरणास्पद और संग्रहणीय पुस्तक है।एतदर्थ कवि द्विवेदी जी बधाई के पात्र हैं।
इति शुभम्।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय